Wednesday 31 October 2018

बाजारवाद की तरफ ढकेल दी गई हैं अब साहित्यिक पत्रिकाएं : रामकुमार



नामी कवि-कहानीकार से विशेष भेंटवार्ता
बिलासपुर, छत्तीसगढ़। "वर्तमान समय में साहित्यिक पत्रिकाओं को बाजारवाद की तरफ ढकेल दिया गया है। कुछ कालगति के कारण भी इनका स्तर गिरा है। हालांकि यह वक़्त भारतीय समाज का संक्रमणकाल है। इसकी अपनी जीवन पद्धति थी और उसके अपने जीवन मूल्य थे जो अब परिवर्तित किये जा रहे हैं। उसमें अपने होने को चिन्हित करने, रहने की जद्दोजहद, कशमकश है। अभी तक ऐसी कोई पत्रिका नहीं आ पाई है, जिसमें पूरे परिवार के लिए सब कुछ हो। साहित्यिक कही जाने वाली  पत्रिकाएं साहित्य की अभिरूचि के व्यक्तियों के लिए ही है। ऐसी कोई पत्रिका अभी नहीं है, जो पूरे समाज और हर तबके के लोगों को जोड़ सके।" यह चिंता नामी कवि-कहानीकार रामकुमार तिवारी ने मंगलवार, 30 अक्टूबर को न्यूज़ पोर्टल "एएम पीएम  टाइम्स" को दी गई विशेष भेंटवार्ता के दौरान व्यक्त की।
संजोई हुई स्मृतियों को ताज़ा करते हुए बिलासपुरवासी श्री तिवारी ने बताया कि, "जब कभी मैं अपने लेखकीय जीवन के बारे में सोचता हूँ तो मुझे आश्चर्य होता है कि इस क्षेत्र में मैं कैसे आ गया। मेरे आसपास, मेरे परिवार और न ही मेरी शिक्षा में साहित्य के लिए कोई जगह थी। नौकरीपेशा होने के कारण जब मैं स्थानांतरित होकर सरगुजा जिले रामानुजगंज कसबे में पहुंचा तो यहीं से लेखन की शुरूआत हुई। यह कस्बा प्यारा, सुंदर, नैसर्गिक और आत्मीयता से लबरेज़ था। दरअसल मुझे तो यहां विभागीय रूप से "काला पानी" सजा की तरह भेजा गया था। लेकिन कुछ ऐसा संयोग बना कि वहीं रहते हुए लेखन कार्य शुरू हुआ। वह एक बहुत बड़ी नाटकीय और रोचक घटना है, जिसे मैं कभी विस्तार से किसी लंबी कहानी या उपन्यास में लिखूंगा। खैर, वहां रहकर मैं अखबारों के रविवारी पृष्ठों को पलटते हुए लेखन की ओर आकृष्ट हुआ। लेखन को जाना, समझा। वहां धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, कादम्बिनी जैसी पत्रिकाएं आती थी। इसी बीच मासिक पत्रिका "कादम्बिनी " ने अखिल भारतीय कहानी प्रतियोगिता (वर्ष 1990) आयोजित की। यह 35 वर्ष से कम उम्र के कहानीकारों के लिए थी। मेरे ज़ेहन में एक कहानी थी। रात में उसे लिखा और सुबह कादम्बिनी को पोस्ट कर दिया। कहानी का शीर्षक था "सुकून"। इसे सर्वश्रेष्ठ कहानी का पुरस्कार मिला। यह मेरे जीवन की पहली रचना थी, जो प्रकाशित हुई और पुरस्कृत भी। इसके बाद मुझे बहुत सारे पत्र मिले, जो मैंने सम्हाल कर रखे हैं। वास्तव में मैं तो कहानीकार बनना ही नहीं चाहता था। मैं तो कविताओं की ओर आकृष्ट हुआ था। इसलिए रजिस्टर में उसे लिखता रहता था। जो एक तरह से मेरे लिए "वागले की दुनिया" जैसी थी। बाद में उन कविताओं का संग्रह प्रकाशित भी हुआ जिसका नाम था "जाने से पहले मैं जाऊँगा"। मेरी पहली पुस्तक बतौर यह संकलन वर्ष 1989 में समीकरण प्रकाशन, हरपालपुर, छतरपुर (म.प्र.) से प्रकाशित हुआ था। इसमें संवेदनाओं का खरापन और उसका छायांकन है, जो आज भी मुझे गहरी अनुभूति देता है। फिर कुछ समय बाद मेरे लेखन का विस्तार हुआ। जब भोपाल गया, तो वहां के साहित्यिक वातावरण से परिचित हुआ। राजेश जोशी, नवीन सागर जैसे साहित्यकारों से परिचय हुआ। नवीन सागर से तो साहित्यिक रिश्ता गहरा हो गया। कादम्बिनी वाली मेरी कहानी से वे प्रभावित थे। चार पांच साल बाद जब उनसे मिला तो नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए वे पूछे "कहानी लिखना क्यों छोड़ दिए हो?" मैंने जवाब दिया "नहीं छोड़ी है"। फिर भी उन्होंने चेतावनी भरे लहज़े में कहा "अगली बार आना तो कहानियां लिख कर आना, वरना मत आना।" उनका दबाव था। कुछ कहानियां मेरे जेहन में थी, जिसे लिखता रहा। पत्रिका "पहल" में प्रकाशित कहानी क़ुतुब एक्सप्रेस को वर्ष 2000 का क्रियेटिव फिक्शन के लिए महत्वपूर्ण कथा पुरकार भी मिला। इस तरह अप्रत्याशित रूप से कहानी कहानी की लेखन यात्रा आज भी जारी है। कम लिखता हूँ। लेकिन वर्ष में एक दो कहानी जरूर लिखता हूँ।"
रामकुमार तिवारी से जब यह पूछा गया कि आप कविता, कहानी में शिल्प को कितना महत्व देते हैं? तो उन्होंने कहा "शिल्प का महत्व तो होता है। जैसे शरीर पांच तत्वों से बना होता है वैसे ही साहित्य सृजन के लिए भी विविध तत्व आवश्यक होते हैं। उसमें शिल्प के अलावा भाषा, कथ्य सभी बराबर रूप से महत्वपूर्ण होते हैं। हालांकि कभी कभी विमर्शों के तहत रचनाओं का कम ज्यादा आंकलन किया जाता है, जो अनावश्यक है। मेरा मानना है कि साहित्य में नयापन हो, उसमें अपने समय का पृष्ठ तनाव हो, उस समय के अभाव का प्रकाश बोध हो, मानवीयकरण हो। रचनाओं में मात्रा ज्ञान के साथ सब चीजें जरूरी है, वरना  वह असन्तुलित हो जाती है।"
धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, दिनमान, सारिका जैसी लोकप्रिय पत्रिकाओं के बंद हो जाने बाद रिक्त हुए साहित्यिक स्थान को क्या वर्तमान की पत्रिकाएं पूर्ण कर पा रही हैं? इसके उत्तर में श्री तिवारी ने दुःख प्रकट करते हुए कहा "जो रिश्ता समाज के साथ था, वो टूट गया। जो कभी धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान आदि पत्रिकाएं रिक्तता को भरा करती थी। निहायत घरेलू परिवार, शिक्षारत व्यक्ति, या कहें हर उम्र के लोगों के लिए ये सरणी बनी हुई थी। विकासशील देश में होने वाले संक्रमण का असर हमारे यहां भी हुआ है। इस संक्रमण काल से हमारा समाज भी गुजर रहा है। पत्रिका नवनीत, कादम्बिनी निकल तो रही है, परंतु उसे पढ़ने वाले वैसे नहीं रहे। मुझे लगता है कि एक दो दशक तक ये दौर चलेगा। इसके बाद फिर से लोग छपे हुए अक्षर की ओर लौटेंगे।"
सोशल मीडिया का यह दौर साहित्य जगत के लिए कितना उपयोगी है? उनका जवाब उम्मीद भरा था - "सोशल मीडिया ने एक तरह से सकारात्मक स्पेस दिया है। जिनके लिए मीडिया में स्पेस नहीं था, वे अब यहां अपने रचे हुए को रख पा रहे हैं, दिखा पा रहे हैं। यह सब लोकतांत्रिक ढंग से अच्छा है, लेकिन रही बात इसके परिष्कार की, तो यह कहा जा सकता है कि इसका दुरूपयोग भी हो रहा है। इसके ज़रिये आत्मप्रशंसा भी हो रही है। यह माध्यम आत्म मुग्धता का भी शिकार हो रहा है। बहुत सारा अनर्गल है। यह लोगों का समय खा रहा है। इसकी लत भी लग रही है। फिर भी उम्मीद है कि उससे लोग धीरे धीरे उबरेंगे। आगे चल कर लोग उसका सकारात्मक उपयोग करना जानेंगे, करेंगे। मुझे पूरा भरोसा है कि आने वाले समय का यह सकारात्मक साधन होगा।"
1 फरवरी 1961 को उत्तरप्रदेश के ग्राम तेइया, महोबा में जन्मे रामकुमार तिवारी ने छतरपुर (म.प्र.) से सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया था। इनका दूसरा काव्य संग्रह "कोई मेरी फोटो ले रहा है" वर्ष 2008 में सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर से प्रकाशित हुआ था। साक्षात्कार, जनसत्ता, पहल, वागर्थ, समकालीन भारतीय साहित्य, कृति ओर, वसुधा, उत्तर प्रदेश, आजकल, वर्तमान साहित्य, उद्भावना, अक्षर पर्व, बीज की आवाज़ आदि पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित कविताओं का यह उम्दा संकलन है। वर्ष 1991 में आकाशवाणी रिक्रिएशन क्लब, भोपाल द्वारा प्रकाशित काव्य संग्रह "बीज की आवाज़" में इनकी भी कवितायें शामिल की गई थी। यह 1980 के बाद आये दस कवियों के चयन की पुस्तिका थी।  चयन और भूमिका राजेश जोशी की थी। वर्ष 2000 में कथा, नई दिल्ली द्वारा "कथा- प्राइज स्टोरीज वॉल्यूम 10" प्रकाशित किया गया था। इसमें इनकी पुरस्कृत कहानी क़ुतुब एक्सप्रेस का अंग्रेजी अनुवाद शामिल था, जो सारा राय द्वारा अनुदित था। वर्ष 2013 में कहानी संग्रह "क़ुतुब एक्सप्रेस" सूर्य प्रकाशन मंदिर, बीकानेर से प्रकाशित हुआ था। वर्ष 2018 में केलिबर पब्लिकेशन, पटियाला, पंजाब द्वारा  कविताओं का संग्रह "आसमान को सूरज की याद नहीं" का पंजाबी में अनुवाद (जगदीप सिद्धू द्वारा अनुदित) प्रकाशित हुआ था। रामकुमार तिवारी का नया काव्य संग्रह "धरती पर जीवन सोया था" शीघ्र छप कर आने वाला है। उन्होंने अथिति सम्पादक बतौर अपनी पहचान भी बनाई है। नवम्बर,  2007 में मासिक पत्रिका "कथादेश" के नवीन सागर विशेषांक के वे अथिति सम्पादक थे।
रामकुमार तिवारी अपने साहित्य सृजन को लेकर बेहद गंभीर रहते हैं। उन्होंने अपने पहले काव्य संग्रह में "मेरी बात" के तहत लिखा था कि "रचनाक्रम के प्रयास में मेरा उद्देश्य रहा है कि कविता को सतहीकरण से बचाते हुए उसका सहज सरल स्वरूप ही सामने आये। कविता और पाठक के बीच भाषा की खाई न रह पाये। पाठक कविता को मुझसे ज्यादा प्रत्यक्ष होकर अनुभूत कर सके।" इनके दूसरे काव्य संग्रह "कोई मेरी फोटो ले रहा है" की भूमिका में विष्णु खरे ने भी लिखा था "मानवीय उपस्थिति के बिना आज कविता लिखना असम्भव सा है। लेकिन राम कुमार तिवारी के काव्य में एक और बात जो चौकाती है, वह उसमें प्रकृति की अपेक्षाकृत प्रचुर उपस्थिति है। सूर्य, चंद्र, धरती, आकाश, तारे, पहाड़, नदी, जंगल, पेड़, पक्षी, घाटी, रेत, मरुस्थल आदि से कवि ऐसा सृष्टि-चित्र रचता है जो अपरिचित प्रकृति चित्रण नहीं है, बल्कि कवि के "स्व" एवं "प्रकृति" के "अन्य" के बीच कभी भावनात्मक तो कभी चिंतनशील आवाजाही है।"
इस आवाजाही के दरम्यान रामकुमार तिवारी अपने पहले काव्य संग्रह "जाने से पहले मैं जाऊंगा" में इसी शीर्षक की कविता में अपनी जिज्ञासा और इच्छा को अत्यंत मार्मिक तरीके से लिखते हैं -"जाने से पहले मैं जाऊँगा/ कोयल के पास/ यह जानने कि तुमने/ कौए से अलग पहचान/ कैसे बनाई?/ जाने से पहले मैं जाऊँगा/ झरने के पास/ यह जानने कि तुम/ नीचे गिर कर भी कैसे पा लेते हो/ नव-रूप, नव-गीत, नव-गति?/ कैसे हो जाती/ तुम्हारी ऊर्जा गुणित/ जाने से पहले मैं जाऊँगा/ आले के पास/ यह जानने कि तुम कैसे/ दीये की सारी कालिख स्वयं लेकर/ सारा प्रकाश कमरे को दे देते हो/ जाने से पहले मैं जाऊँगा/ कछुए के पास/ यह जानने कि तुम कैसे?/ दौड़ में खरगोश से/ जीत गए थे/ जाने से पहले मैं जाऊँगा/ खरगोश के पास/ यह जानने कि तुम कैसे/ दौड़ में कछुए से/ हार गए थे?/ जाने से पहले मैं जाऊँगा/ ऊँट के पास/ यह जानने कि तुमको/ रेगिस्तान का जहाज क्यों कहते?/ जाने से पहले मैं जाऊँगा/ नेल्सन मंडेला के पास/ यह जानने कि बंद मुट्ठी में क्या है?/ जाने पहले मैं जाऊँगा/ इस दुनिया से कूच करते/ किसी आदमी के पास/ यह जानने कि तुम/ इतनी लम्बी यात्रा पर जा रहे हो/ अपने साथ क्या-क्या ले जा रहे हो/ जाने से पहले मैं जाऊँगा/ अपने पास/ यह जानने कि/ मैं यहां क्यों आया हूँ?"
(भेंटवार्ता और चित्र दिनेश ठक्कर बापा द्वारा)

Tuesday 30 October 2018

साहित्य में आम आदमी की संवेदनाएं और पीड़ा हो : नथमल



वरिष्ठ पत्रकार-साहित्यकार से विशेष साक्षात्कार
साहित्य में आम आदमी की संवेदनाओं और उसकी  पीड़ा को उभारना आवश्यक है : नथमल शर्मा
बिलासपुर, छत्तीसगढ़। "साहित्य में आम आदमी की संवेदनाओं और उसकी पीड़ा को उभारना आवश्यक है। एक संवेदनशील रचनाकार अपने आसपास, गाँव, शहर, समाज पर जब लिखता है, तब वह इसका ध्यान रखता है। जब तक व्यक्ति का श्रम, उसकी पीड़ा, समाज का दर्द, समाज को बदलने की चाहत कविता या कहानियों में नहीं झलकेगा, तब तक वह सार्थक साहित्य नहीं कहा जा सकता।" यह विचार वरिष्ठ पत्रकार-साहित्यकार श्री नथमल शर्मा ने सोमवार, 29 अक्टूबर को न्यूज़ पोर्टल "एएम पीएम टाइम्स" को दिए गए विशेष साक्षात्कार के दौरान व्यक्त किये।
10 अप्रैल 1956 को बालाघाट, मध्यप्रदेश में जन्मे श्री नथमल शर्मा वाणिज्य में स्नातक हैं। छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता ही इनका मुख्य कर्म रहा है। इन्होंने अपने 41 बरस पत्रकारिता के क्षेत्र को संवेदनशीलता और सामाजिक सरोकारों के साथ समर्पित किये है। पत्रकारिता  के साथ ही पत्रकार और साहित्य आंदोलन से इनका गहरा जुड़ाव रहा है। दैनिक देशबन्धु के बिलासपुर संस्करण को स्थापित करने में बतौर सम्पादक इनका महती योगदान रहा है। वर्ष 1988 में इन्हें बिलासपुर जिले में मरवाही के निकट रजत जयंती ग्राम बस्ती बगरा की ग्राउण्ड रिपोर्टिंग के लिए अखिल भारतीय स्टेट्समेन ग्रामीण रिपोर्टिंग पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वे  विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विद्यार्थियों के लिए अध्यापन कार्य भी करते रहे हैं। बिलासपुर को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले श्री शर्मा बिलासपुर, रायपुर और शहडोल से प्रकाशित होने वाले दैनिक इवनिंग टाइम्स के प्रधान सम्पादक हैं। वे प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव, छत्तीसगढ़ (2013 से) तथा राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष (2016 से) भी हैं। बरसों पहले जब भीष्म साहनी बिलासपुर आये थे, तब उनके हाथों इन्हें अपने प्रथम काव्य संग्रह "सूरज को देखो" के विमोचन का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। इसका प्रकाशन प्रगतिशील लेखक संघ, बिलासपुर ने किया था। इनका दूसरा काव्य संग्रह है "उसकी आँखों में समुद्र ढूँढता रहा" (प्रथम संस्करण वर्ष 2016) । इसके प्रकाशक प्रगतिशील लेखक संघ, नई दिल्ली और मुख्य वितरक पीपुल्स पब्लिशिंग हाऊस, नई दिल्ली हैं। श्री शर्मा ने कुछ कहानियां भी लिखी हैं, जो प्रकाशन हेतु गई हैं। इनका एक नया काव्य संग्रह और लेखों के दो संग्रह प्रकाशनाधीन हैं।
श्री शर्मा की सृजित कविताओं, कहानियों, अख़बारी टिप्पणियों और संपादकीय में सामाजिक सरोकारों की प्रधानता रहती है। उनका दर्द, आक्रोश कविता "हम छत्तीसगढ़ के लोग" में झलकता भी है "पूर्वजों की आँखें देखती हैं/ कहीं दूर से/ अपने खेतों को कारखाना बनते/ और/ देखती हैं/ अपने ही खेतों में/ अपने बच्चों को  मजदूरी करते/ टपक पड़ते हैं आँसू तब/ वे आँसू मिल जाते हैं/ महानदी की धार में/ सबके आँसू लिए बहती है/महानदी/हम छत्तीसगढ़ के लोग/ महानदी में आँसू बन कर बह रहे हैं/ तरक्की की कीमत चुका रहे हैं/ अपनी धरती में/ सोना, कोयला, सागौन, पलाश, हीरा/होने की कीमत चुका रहे हैं/सोना हो रहे हैं वे लोग/कोयला हो रहे हैं हम लोग/हो भी जाना चाहते हैं/हम कोयला/कोयले की तरह/दहक भी जाना चाहते हैं/हम छत्तीसगढ़ के लोग/जानते हो तुम कि/दहकेंगे हम/इसलिए तेजी से खोद रहे हो/और लारियों में भर -भर कर/लगातार दूर भेज रहे हो/हम छत्तीसगढ़ के लोग/जंगलों में बारूद बनना नहीं चाहते/हम तो/जंगल में ज़िन्दगी ढूँढ़ते हैं"।
नथमल शर्मा की कविताओं का हर कोई प्रशंसक है। जाने माने कथाकार तेजिन्दर ने इनके दूसरे काव्य संग्रह की प्रस्तावना में लिखा था "नथमल शर्मा की कविता की सबसे बड़ी ताकत यह है कि वे मनुष्य और मनुष्यता के लिए लिखी गई कवितायें है जो सीधे पाठक के साथ संवाद करती है। अपनी कविता समुद्र में वे उस बालक के साथ भी संवाद करते नज़र आते हैं, जो सीप, मोती और शंख बेचने वाले बच्चों के झुण्ड में शामिल है। वे उन बच्चों की आँखों में समुद्र ढूँढ़ते हैं और यह एक बात उनकी कविता को अनंत विस्तार देती है।"
कविताओं की ताकत को रेखांकित करते हुए श्री शर्मा अपनी भेंटवार्ता के दौरान कहते भी हैं "कविता बहुत कुछ कहती है। कई बार कविता सब कुछ कह जाती है। दरअसल कविता जहां ख़त्म होती है, बात वहीं से शुरू होती है। समाज को देखने दुनिया को खंगालने की ताकत कविता की भी है। ये शब्दों की ताकत है। ये कविताओं का प्रभाव है कि जो ज़िन्दगी को बनाती है, संवारती है। मुझे लगता है कि पत्रकारिता करते करते संवेदनशीलता भीतर बहती रही। इस संवेदनशीलता ने ही खबरों के अलावा कुछ रच दिया, जिस मेरेे मित्र कवितायें कहते हैं। पत्रकारिता की जद्दोजहद, समाज, दुनिया, राजनीति को देखने की उलझनें भी ज़िन्दगी में रही। इस बीच कविताओं के साथ दोस्ती हुई। उसके बाद निरन्तर सृजन हो रहा है।"
प्रगतिशील कविताओं के जारी लेखन कर्म से संतुष्टि बाबत उन्होंने स्पष्ट किया कि, "सवाल प्रगतिशीलता का नहीं बल्कि मानव, मनुष्यता के लिए क्या लिखा जा रहा है, उसका होना चाहिए। रचनाओं को किसी दायरे में बाँध नहीं सकते। हाँ, यह बात सही है कि हम परम्पराओं को तोड़ते हैं। जड़ चीजों पर प्रहार करते हैं। हम समाज, देश, दुनिया को बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं। रचनाओं के माध्यम से उसे उकेरते हैं। शायद वही प्रगतिशीलता है। जहां तक सन्तुष्ट होने की बात है तो मेरा मानना है कि अगर जिस दिन कोई रचनाकार संतुष्ट हो गया तो उसी दिन उसका रचना कर्म बंद हो जाएगा। लगातार लिखते जाना हमारा काम है। मुझे लगता है कि लिखने से पहले ज्यादा पढ़ना भी हमारा काम है।"
आपने अपनी कविताओं में किन विषयों को ज्यादा फोकस किया है? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि,  "संवेदनशील रचनाकार किसी एक विषय पर बात नहीं कर सकता। वह सब पर लिखता है। कविताओं में दुनिया, नदियां, चिड़ियाँ, पहाड़, समुद्र ये सब प्रतीक हैं। दरअसल कविताओं में मनुष्य की संवेदनाएं होती हैं। समाज की पीड़ा होती है। वह समय बीत गया जब नैन नक्श, श्रृंगार पर ही लिखने को कवितायें कहते थे।"
सोशल मीडिया के ज़रिये लिखी जाने वाली कविताओं के स्तर पर इनका कहना है कि, "सोशल मीडिया का दौर एक तरह से अच्छा भी है। इसने एक बड़ा कैनवास रचनाकारों के सामने रखा है। साथ ही बुराइयां भी हैं। इस पर बिना सिर पैर की चीजें भी आ रही हैं। सवाल यह है कि इसमें हम क्या बोल रहे है, बता क्या रहे हौं, लिख क्या रहे है? जो भी प्रस्तुत, सम्प्रेषित हो वह स्तरीय और सार्थक होना चाहिए।"
पिछले एक दशक से जो साहित्य सृजन हो रहा है, उसमें समाज के सरोकारों से लेकर आम आदमी की बात को कितना समाहित किया जा रहा है?, श्री शर्मा ने कहा "अगर आम आदमी की बात नहीं होती है तो वह सही रचनाएं नहीं कही जा सकती। सवाल यह है कि हम किस नज़रिये से लोगों को देख रहे हैं। अपनी रचनाओं में किस नज़रिये को पेश कर रहे हैं। उसमें कितनी संवेदनशीलता है।"
साहित्यिक संस्थाओं और सरकारी साहित्य अकादमी द्वारा प्रदत्त किये जाने वाले पुरस्कारों की प्रक्रिया को आड़े हाथ लेते हुए उन्होंने कहा कि "हिन्दुस्तान में एक शब्द है जुगाड़। अगर आप जुगाड़ जानते हैं तो ये पुरस्कार आसानी से हासिल कर सकते हैं। उस पर अब बहुत ज्यादा चर्चा करने की जरूरत नहीं है। अब जागरूक लेखक, पाठक सब असलियत जान गए हैं। मुझे यह भी नहीं लगता कि पुरस्कार प्राप्त करने से कोई रचनाकार बड़ा हो जाता है। बहुत सारे रचनाकार पुरस्कार प्राप्त कर छोटे हुए हैं। साहित्य या पाठकों को इस तरह के किसी सील ठप्पे की जरूरत भी नहीं है।"
शैक्षणिक संस्थाओं के पाठ्यक्रम में किनकी साहित्यिक रचनाओं को ज्यादा शामिल किया जाना चाहिए?, श्री शर्मा ने कहा "हाँ, यह महत्वपूर्ण सवाल है। कहानीकारों में प्रेमचंद और कवियों में मुक्तिबोध जैसे साहित्यकारों का उदाहरण देना चाहूँगा। जिनकी रचनाओं को स्कूल से लेकर कॉलेज विश्विद्यालय तक के पाठ्यक्रम में अधिक शामिल करना चाहिए, क्योंकि वे हमारे समाज का आइना हैं। वे इतिहास का बोध करा रहे हैं। वे आगे चलने के राह दिखा रहे हैं। इन पर लगातार काम होना चाहिए। अगर युवा पीढ़ी के साथ टकरा देने का माद्दा हमारे में नहीं है तो रचनाकर्म करने का कोई मतलब नहीं है।"
(भेंटवार्ता और चित्र दिनेश ठक्कर बापा द्वारा)

Monday 29 October 2018

सोशल मीडिया आने के बाद साहित्यकारों को बहुत स्पेस मिला : द्वारिका



बिलासपुर, छत्तीसगढ़। "सोशल मीडिया आने के बाद ही साहित्यकारों को बहुत स्पेस मिला है। उसके पहले तो वे संपादकों की दृष्टि-कुदृष्टि पर निर्भर थे। अब ऐसी कोई परेशानी नहीं है। आप अपनी बात लिखिए। फेसबुक या सोशल, इलेक्ट्रानिक मीडिया में डालिए। पाठक खुद तय करके बताते हैं कि ये उनको पसंद है या नहीं।" यह विचार देश के प्रसिद्ध प्रबंधन गुरु और साहित्यकार द्वारिका प्रसाद अग्रवाल ने रविवार, 28 अक्टूबर को न्यूज़ पोर्टल "एएम पीएम टाइम्स" से विशेष भेंटवार्ता के दौरान व्यक्त किये।
18 दिसम्बर, 1947 को जन्में श्री द्वारिका प्रसाद अग्रवाल हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर हैं। वे जूनियर चेम्बर इंटरनेशनल के सर्टिफाइड मेंबर ट्रेनर हैं। वे मानव-व्यवहार प्रबंधन और व्यक्तित्व विकास के अंतर्राष्ट्रीय प्रशिक्षक रहे हैं। अब साहित्य सृजन के क्षेत्र में भी वे सशक्त हस्ताक्षर माने जाते हैं। इन्होंने आत्मकथा लेखन की नई शैली विकसित की है। इनकी आत्मकथा के तीन खंड - "कहाँ शुरू कहाँ ख़त्म" (डायमंड पॉकेट बुक्स, नई दिल्ली, वर्ष 2014), "पल पल ये पल" (बोधि प्रकाशन, जयपुर, वर्ष 2015, पुनर्मुद्रण वर्ष 2017) और "दुनिया रंग बिरंगी" (बोधि प्रकाशन, जयपुर, वर्ष 2016) प्रकाशित हो चुके हैं। ये सोशल मीडिया में भी बेहद चर्चित रहे हैं। इसके अलावा इसी वर्ष बोधि प्रकाशन से प्रकाशित कहानी संग्रह "याद किया दिल ने" और रश्मि प्रकाशन, लखनऊ से प्रकाशित यात्रा वृत्तांत "मुसाफ़िर जाएगा कहाँ" भी पाठकों द्वारा प्रशंसित है। उपन्यास "मद्धम मद्धम" शीघ्र ही छप कर आने वाला है।
श्री अग्रवाल ने अपनी भेंटवार्ता के दौरान तमाम सवालों के जवाब बेबाकी से दिए। प्रबंधन गुरु से साहित्यकार बनने की वज़ह बताते हुए उन्होंने कहा कि अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के दो साधन मुख्य हैं। हम बोलें या लिखेँ। मैंने वर्ष 1992 से प्रशिक्षण कार्य शुरू किया जो वर्ष 2002 तक चला। वर्ष 2003 में जब मुझे मुँह का कैंसर हुआ तो बोलने में असुविधा होने लगी तो मैं लेखन के क्षेत्र में आ गया।"
जब उनसे यह पूछा गया कि जो लोग अपनी आत्मकथा लिखते हैं, वे आम तौर पर कई चीजों को छुपा लेते हैं। क्या आपने भी ऐसा ही किया है? तो उन्होंने सवाल मिश्रित जवाब दिया -"सब कुछ कैसे बताया जा सकता है?" प्रतिप्रश्न था - आपने क्या बताने की कोशिश की है? उनका दो टूक उत्तर था -"मैंने वो बताने की कोशिश की है, पाठकों के काम आ सके।" गौरतलब है कि श्री अग्रवाल ने अपनी पुस्तक की प्रस्तावना में इस मुद्दे पर सफ़ाई देते हुए लिखा भी है कि "आत्मकथा लिखना नंगे हाथों से 440 वोल्ट का करंट छूने जैसा खतरनाक काम है। कथा सबकी होती है, लेकिन जब उसे सार्वजनिक रूप दिया जाता है तो वह चुनौतीपूर्ण हो जाती है। क्या बताएं, क्या न बताएं? बताएं तो किस तरह, छुपाएं तो कैसे? अतीत की घटनाओं का शब्द चित्रण, अपनी कमजोरियों और विशेषताओं का तटस्थ विवेचन, घटनाओं से जुड़े लोगों की निजता और भावनाओं का सम्मान ऐसा कार्य है, जैसे युद्ध क्षेत्र में योद्धा अपने प्राण देने को तैयार हो, लेकिन उसे सामने वाले के प्राण लेने में संकोच हो रहा हो।" वे यह भी लिखते हैं कि "मुझे क्या जरूरत है कि मैं निर्वस्त्र होकर बीच बाजार में खड़ा हो जाऊं, मात्र अहंकार की तुष्टि या आत्म प्रचार के लिए।" "बताना बहुत कुछ है, लेकिन सम्प्रेषण की बाधाएं हैं। शब्दों की विवशता भी है। मेरे सामने मुश्किल यह है कि मैंने जो आंसू बहाए हैं, उन्हें आपको कैसे दिखाऊं? मैंने जो खुशियां पाई हैं, उन्हें आपको कैसे महसूस कराऊं?" उन्होंने भावुक होकर यह भी लिखा है कि, "मेरे जीवन के अंतिम पड़ाव में जो कुछ सीखने में कसर रह गई थी, वह भी पूरी हो गई। आत्मकथा का तीसरा खण्ड "दुनिया रंग-बिरंगी" उन्हीं साँसों की आहट है, जो किसी भी क्षण रुकने के लिए आतुर है।" "दरअसल यह आत्मकथा "मैं" की नहीं, "हम" की है।
श्री अग्रवाल के साहित्य सृजन की लोकप्रियता में सोशल मीडिया के योगदान को नकारा नहीं जा सकता है। वे इसे खुले तौर पर स्वीकार भी करते हैं। सोशल मीडिया के वे हिमायती भी हैं। जब उनसे यह सवाल किया गया कि सोशल मीडिया के ज़रिये जो रचनाएं लिखी जा रहीं हैं, उनके स्तर से क्या आप संतुष्ट हैं? उन्होंने कहा "उनके स्तर की जांच करने वाला मैं कौन होता हूँ? मैं न्यायाधीश नहीं हूँ। उनके स्तर का आंकलन पाठक करेंगे। पाठक भी सब किस्म के होते हैं। जो घटिया स्तर के पाठक होंगे वे घटिया रचनाओं और जो उच्च स्तर के पाठक होंगे वे उसी स्तर को पसंद करेंगे।"
वर्तमान में सोशल मीडिया की ताकत को आप किस रूप में आंकते है? जवाब था -"यह बहुत मजबूत है। इसका असर देशव्यापी है। देखिये, हर व्यक्ति में दो प्रतिभाएं नैसर्गिक होती हैं। एक, साहित्य सृजन की और दूसरी, गायन की। वह कोशिश करता है कि उसे कोई ऐसा मंच मिले जहां वह अपने लिखे को बता सके और अपने गाने को सुना सके। फेसबुक, वाट्सएप आदि सोशल मीडिया के ऐसे साधन हैं, जिससे लोग अपनी बात खुल कर प्रस्तुत कर पा रहे हैं। उनका उत्साह बढ़ रहा है। उन्हें अपनी कमियों को सुधारने का मौक़ा भी मिल रहा है।"
साहित्य के क्षेत्र में बढ़ती खेमेबाजी पर प्रतिक्रियास्वरूप उन्होंने नाराज़गी व्यक्त करते हुए कहा कि "साहित्य के क्षेत्र में खेमेबाजी करना दुष्टों का काम है। उनको अपना काम करने दीजिए।" अधिकाँश पुराने नामी साहित्यकारों द्वारा नए साहित्यकारों को हतोत्साहित किये जाने पर श्री अग्रवाल ने तंज कसते हुए कहा कि, "साहित्य के क्षेत्र में जो स्थापित हो जाता है, वह मठाधीश हो जाता है। इसका कोई उपाय नहीं है।"
प्रसिद्ध साहित्यिक पत्रिकाओं द्वारा रचना प्रकाशन में बरते जाने वाले भेदभाव के बारे में उन्होंने कहा कि, "संपादकों के जो लोग परिचित होते हैं या जिनके लिए सिफ़ारिश होती है, वे उनको छपने का मौक़ा देते है। नए लोगों की बात उनको पसंद नहीं आई तो उन्हें मौक़ा नहीं देते हैं। उनके इस वर्चस्व को सोशल मीडिया ने ही तोड़ा है।"
साहित्य में वर्गीकरण विमर्श और अपने लोगों को ही  महत्व देने के सन्दर्भ में श्री अग्रवाल का मंतव्य था "जो लोग अपने और अपनों की बात को महत्व दे रहे हैं, तो इसमें कोई गलत नहीं है। लेकिन दूसरे के साहित्य को नीचा दिखा रहे हैं, उसका मखौल उड़ाते हैं, यह साहित्य के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है।" साहित्यिक गोष्ठी में भी नए साहित्यकारों की उपेक्षा के बारे में इनका कहना है कि, "ये तो होता ही है। मेरे ख्याल से इसका कोई उपाय नहीं है।"
आने वाला समय साहित्य के क्षेत्र के लिए कैसा होगा? इनका प्रत्युत्तर था "मुझे तो अच्छा लग रहा है। सोशल मीडिया और जो नए प्रकाशन गृह शुरू हुए हैं, वे हिन्दुस्तान में तेजी से उभरे हैं। वो बहुत मौक़ा दे रहे हैं।  लोगों की कृतियों को छाप कर पाठकों तक पहुंचा रहे हैं। मैं बहुत आशान्वित हूँ कि आने वाले दस वर्षों में हिंदी साहित्य में अच्छी प्रगति होगी। बड़ी क्रान्ति होने वाली। है।"
हिंदी सिनेमा में साहित्यिक कृतियों के महत्व को लेकर श्री अग्रवाल ने दावा किया कि, फिल्मों में इसे सदा महत्व दिया गया है। मदर इंडिया, मुग़ले आज़म, गोदान, , साहब बीबी ग़ुलाम जैसी फ़िल्में साहित्यिक कृतियों पर बनी थी। पहले भी काम हो रहा था। अब भी हो रहा है। जैसे जैसे साहित्यिक कृतियों के प्रति सिने निर्देशकों का रुझान बढ़ेगा तो साहित्य को महत्व मिलेगा। जो लोग साहित्य नहीं पढ़ते वे फिल्मों के माध्यम से साहित्य को जान पाएंगे और नए पाठक तैयार हो पाएंगे।"
टीवी सीरियल में साहित्यिक कृतियों के उपयोग के बारे में उनका कहना है कि, "अब तक साहित्यिक कृतियों पर जो धारावाहिक आये हैं, वो शानदार हैं। दूरदर्शन को रिप्लेस करने के बाद जो प्राइवेट चैनल आये उन्होंने इस मामले में उतना न्याय नहीं किया। कमी तो खटकती है। अब तो ज्यादातर गप्पबाजी चल रही है।"
प्रसिद्ध साहित्यकारों की कृतियों के नाम पर धारावाहिकों में कुछ अरसे बाद मनगढ़ंत कहानियों को परोसा जाता है, इस संबंध में श्री अग्रवाल ने कहा कि, "सीरियल के लेखकों को जो समझ में आता है, लिख देते हैं। निर्माता को समझ में आया बना देते हैं। सारा खेल रकम पर टिका है। फ़िल्म , सीरियल बनाना बहुत खर्चीला काम है। देखना पड़ता है कि क्या बिकेगा।"
साहित्य के क्षेत्र में आपकी भावी योजना क्या है? उन्होंने स्पष्ट किया कि "मैं कोई योजना नहीं बनाता। और न ही योजना बना कर लिखता हूँ। मुझे कई बार ऐसा लगता है कि जो कुछ लिखा वह मैंने नहीं लिखा। पता नहीं किसने मुझसे लिखवाया।"
(भेंटवार्ता और चित्र दिनेश ठक्कर बापा द्वारा)

Sunday 28 October 2018

साहित्य के क्षेत्र में घुसपैठिए बहुत आ गए हैं - सतीश जायसवाल




बिलासपुर, छत्तीसगढ़। "साहित्य के क्षेत्र में घुसपैठिए बहुत आ गए हैं। सोशल मीडिया का स्पेस काफी खुल गया है। इसका सदुपयोग और दुरूपयोग दोनों हो रहा है।फिलहाल सोशल मीडिया का दुरूपयोग कुछ ज्यादा ही हो रहा है। इससे कचरा ज्यादा इकट्ठा हो गया है। कल को कचरा छांटने में दिक्कत जाएगी।" यह व्यथा देश के प्रसिद्ध वरिष्ठ पत्रकार-साहित्यकार श्री सतीश जायसवाल ने शनिवार, 27 अक्टूबर को न्यूज़ पोर्टल "एएम पीएम टाइम्स" को दिए गए विशेष साक्षात्कार के दौरान व्यक्त की।
 वर्तमान में साहित्य सृजन के स्तर से क्या आप संतुष्ट हैं, इसके प्रत्युत्तर में श्री जायसवाल ने दुःख जाहिर करते हुए  कहा कि, साहित्य का स्तर लगातार गिर रहा है। वैसे तो दुनिया के हर क्षेत्र में उतार चढ़ाव आता है। हमने जब साहित्य सृजन शुरू किया तो उस समय इस क्षेत्र में बड़े लोग थे। हमारे बाद जो लोग आए और आ रहे हैं, हो सकता है कि कल को ये लोग बड़े होंगे। शायद आज हम उनकी क्षमताओं को पहचान नहीं पा रहे हैं। अभी ये बीच का समय है, जिसमें मैं हूँ। पहले और अभी के लोगों को देख पढ़ रहा हूँ। मैं तटस्थ होकर उनका मूल्यांकन कर रहा हूँ। साथ ही निराश भी हो रहा हूँ। हालांकि आदतन मैं निराश नहीं होता हूँ। उनको भी समय मिलना चाहिए। उम्मीद है कि वे स्वयं को सुधारेंगे। कल ये लोग बड़े निकलेंगे। इन पर भरोसा करना चाहिए।
अच्छे साहित्यकार के गुणों का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि, मेरा यह मानना है कि अगर कोई साहित्यकार है तो उसको अपने समय के साहित्य, साहित्यकारों, कलाकारों, उसके कलारूपों की भी जानकारी होनी चाहिए। साहित्यकार, मन से होता है। केवल टेबल पर लिखने से नहीं होता है। उसके भीतर भावनाएं, संवेदनाएं होनी चाहिए। नया देखने की क्षमता होनी चाहिए।
बिलासपुर के डा. शंकर शेष, श्रीकांत वर्मा की साहित्य- परम्परा के विकास के संदर्भ में श्री जायसवाल ने इस बात पर जोर दिया कि मैं ही नहीं, हर किसी को उस परम्परा का हिस्सा होना होगा। आगे भी हम उसका हिस्सा हो जाएंगे। हालांकि श्रीकांत वर्मा से पहले जगन्नाथ प्रसाद भानु से परम्परा शुरू हुई थी। उससे पहले भी थी, जो इतिहास में दर्ज है।
विश्वविद्यालयों में साहित्य और साहित्यकारों पर होने वाले शोध कार्यों की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि, यूनिवर्सिटी में होने वाले शोध कार्य निराशाजनक हैं। ये झूठ और बेईमानी से भरे हुए हैं। सरकारी नौकरी के कारण कई लोगों को शोध निदेशक होने का हक़ हासिल हो गया है। वे अपने नाते रिश्तेदारों पर शोध करा रहे हैं, जिनका साहित्य में कोई योगदान नहीं है। इससे साहित्य को नुकसान हो रहा है। छोटे राज्यों के अपने कुछ नुकसान भी हैं। यहां राजनैतिक क्षमता तो हासिल हो गई है, परंतु साहित्य को क्षति हुई है।
साहित्य के क्षेत्र में प्रदत्त प्रतिष्ठित पुरस्कारों की चयन प्रक्रिया के सवाल पर श्री जायसवाल ने अफ़सोस जाहिर करते हुए कहा कि, जिन लोगों को यह पुरस्कार, सम्मान दिया जा रहा है, वे उसके लायक नहीं हैं। बहुत निराशाजनक स्थिति है। बाहर नाक कटाने वाली स्थितियां बन रही हैं। मन में बहुत क्षोभ है। हम चुप हैं। अगर हम बोलेंगे, तो लोग सुनेंगे नहीं। बोल कर फायदा क्या है?
उल्लेखनीय है कि 17 जून,1942 को जन्मे श्री सतीश जायसवाल की प्रकाशित कृतियों में कहानी संग्रह - "जाने किस बंदरगाह पर", "धूप ताप", "कहाँ से कहाँ", "नदी नहा रही थी", बाल साहित्य - "भले घर का लड़का", "हाथियों का गुस्सा", छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के पुरोधा रहे श्री मायाराम सुरजन की पत्रकारिता पर केंद्रित मोनोग्राफ, छत्तीसगढ़ के शताधिक कवियों की कविताओं का संचयन "कविता छत्तीसगढ़" का सम्पादन चर्चित रहा है। इसके अतिरिक्त चार साल पहले प्रकाशित संस्मरण कृति "कील काँटे कमन्द" को भी प्रबुद्ध पाठकों से बेहतर प्रतिसाद मिला है। श्री जायसवाल ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात के सीमावर्ती भील अंचल में एक माह तक रहने के बाद अपने संस्मरण को इस कृति में लिखा था।
बिलासपुर वासी श्री जायसवाल पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी सृजन पीठ, भिलाई के अध्यक्ष पद पर चार वर्षों तक कार्यरत रह चुके हैं। उन्होंने नई जिम्मेदारी के विषय में बताया कि, भोपाल और खंडवा के बाद अब बिलासपुर के निकट कोटा स्थित सीवी रमन यूनिवर्सिटी के अंतर्गत भी "वनमाली सृजन पीठ" की स्थापना हुई है, जिसका अध्यक्ष मुझे नियुक्त किया गया है। इस सृजन पीठ के तहत पूरे छत्तीसगढ़ में सृजन केंद्र भी बनेंगे, जिसका गठन शीघ्र ही पूरा हो जाएगा। इसमें साहित्य के अलावा सृजन के सभी क्षेत्र के लोगों को काम करने का मौक़ा मिलेगा। आपसी मेल मिलाप, बातचीत का सिलसिला शुरू होगा। इस सबके बीच मुझे अपनी रचनाशीलता को भी बचाये रखना है। घूमना भी हमारा रचना-अनुभव का एक हिस्सा है। इससे कोई नुकसान भी नहीं है। केवल लिखने तक मैंने अपने को सीमित नहीं रखा है।
आगत कृतियों की जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि, मैंने यात्रा संस्मरण खूब लिखे हैं। अभी उनका संकलन प्रकाशित नहीं हुआ है। राजकमल प्रकाशन के पास रखा है, जिसका शीर्षक है "सूर्य का जलावतरण" । इसमें पूर्वोत्तर राज्यों के यात्रा संस्मरण भी शामिल हैं।
 श्री जायसवाल ने क्षोभ व्यक्त करते हुए कहा कि, मैंने अपने काम को काफी फैला कर रखा है। अब प्राथमिकता है कि इसे समेटा जाए। बड़ी दिक्कत है कि अभी तक मेरा कोई काव्य-संग्रह प्रकाशित नहीं हो पाया है। इससे मेरे मित्र बेहद नाराज़ हैं। अब इसकी तैयारी करना है। उसके बाद नए उपन्यास का काम शुरू करूंगा।
मौजूदा योजनाओं के बारे में उन्होंने कहा कि, मैंने बहुत अधिक यात्राएं की हैं। इन दिनों सामूहिक यात्राएं कर रहा हूँ। सामूहिकता में भी मेरा विश्वास है। "आपसदारियाँ" नामक समूह भी हमने बनाया है। यह 15 लोगों का अनौपचारिक समूह है। इसके तहत सभी राज्यों के रचनाकार किसी एक मौसम में एक जगह जुटते हैं। प्रकृति और वहां के रहवासियों से साहचर्य होता है। हर यात्रा के बाद अनुभव लिखे जाते है। हर दो वर्ष में इसका एक वॉल्यूम तैयार किया जाएगा।
(भेंटवार्ता और चित्र : दिनेश ठक्कर बापा)

Friday 26 October 2018

माहुरी शर्मा का मोहक गायन


बिलासपुर। छत्तीसगढ़ अंचल के सुप्रसिद्ध गायक मुकेश फेम अंचल शर्मा (बिलासपुर वासी) का समूचा परिवार गीत-संगीत को समर्पित है। इनकी सुपुत्री 23 वर्षीय माहुरी शर्मा भी गायन के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाने हेतु अग्रसर है। बीए स्नातक के बाद माहुरी ने इसी साल खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय से गायन विधा में एमए की डिग्री प्राप्त की है। उल्लेखनीय है कि माहुरी  करीब छह साल पहले बिलासपुर में हुई राज्य स्तरीय गायन प्रतियोगिता "अरपा के सुर" में रनर अप रही थीं।
माहुरी ने बुधवार, 24 अक्टूबर को शरद पूर्णिमा की चांदनी रात में अपने पिताश्री अंचल शर्मा के पचासवें जन्म दिन के मौके पर आयोजित संगीत  समारोह में सुरीले गायन के माध्यम से बधाई देकर उनका  आशीर्वाद ग्रहण किया। उन्होंने अपने पसंदीदा चुनिंदा गाने सुनाये। गिटार पर संगत की माहुरी के भाई शगुन शर्मा ने। आयोजन स्थल था मोपका स्थित अंचल शर्मा का स्वर लहरियों से आच्छादित हरा भरा स्वरांगन कॉटेज। यहां प्रबुद्ध संगीत रसिकों की उपस्थिति में माहुरी शर्मा ने फ़िल्म "हीरो" (1983) का लोकप्रिय गीत "लंबी जुदाई, चार दिनों का प्यार, ओ रब्बा..." (गीतकार - आनंद बक्षी, संगीतकार - लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, गायिका - रेशमा) सधे हुए सुर में गाकर मोहित कर दिया। इसे सुन कर आप भी अवश्य कहेंगे "वाह"।

Wednesday 24 October 2018

रमन ने किया नामांकन पत्र दाखिल, सभा में योगी गरजे





विवाद या संकट की स्थिति में राहुल इटली चले जाते हैं : योगी
(विशेष संवाददाता)
राजनांदगांव, छत्तीसगढ़। "जब भी भारत पर कोई विवाद या संकट की स्थिति आती है तो राहुल गांधी को नानी याद आ जाती है और वे ननिहाल इटली चले जाते हैं। तब उन्हें देश और छत्तीसगढ़ याद नहीं आता।" यह तंज उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यहां मंगलवार को आयोजित छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह की नामांकन-सभा के दौरान कसा।
उन्होंने अपने भाषण यह भी कहा कि हम भगवान राम की जन्मभूमि से भगवान राम के ननिहाल आये हैं। छत्तीसगढ़ से हमारा भावनात्मक रिश्ता है। ननिहाल में भगवान श्री राम का भव्य मंदिर बन गया है। इसमें कोई संदेह नहीं कि जन्मभूमि पर भी जल्द ही श्री राम का भव्य मंदिर बनेगा। योगी ने कांग्रेस को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि कांग्रेस नहीं चाहती कि रामजन्मभूमि पर राम मंदिर बने। वह हमेशा से इसकी विरोधी रही है। कांग्रेस ने हमेशा क्षेत्र, जाति और तुष्टिकरण की नीति के नाम पर देश को तोडऩे की कोशिश की है। जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि वे दुर्घटनावश हिन्दू हैं और उनकी चौथी पीढ़ी अब मंदिरों तक जा रही है। विपक्षी नेताओं पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का एक भारत, श्रेष्ठ भारत का सपना कुछ लोगों को पसंद नहीं आ रहा है।
 योगी ने रमन सिंह की तारीफ़ करते हुए दावा किया कि छत्तीसगढ़ को डॉ. रमन सिंह ने विकास के मॉडल के रूप में सारे देश के सामने प्रस्तुत किया है और यहां उनके नेतृत्व में लगातार चौथी बार सरकार बनना अटल है। रमन सिंह ने विकास का जो मॉडल तैयार किया है वो छत्तीसगढ़ को एक नई पहचान दिलाएगा। छत्तीसगढ़ का पीडीएस सिस्टम पूरे देश के लिए एक आदर्श बन गया है।जिसे हमने उत्तरप्रदेश में भी लागू किया है। छत्तीसगढ़ का किसान मॉडल भी हमने अपनाया जिससे उत्तरप्रदेश में किसान खुशहाली की और आगे बढ़ रहे हैं। छत्तीसगढ़ की तरह हम भी किसानों को उनकी उपज का वाजिब दाम उनके बैंक खाते में सीधे डाल रहे हैं। जब मैं मुख्यमंत्री बना तो मैंने छत्तीसगढ़ में अपनी टीम भेज कर यहां की योजना का अध्ययन करा कर उत्तरप्रदेश में लागू कराया था।
योगी आदित्यनाथ ने मोदी सरकार और छत्तीसगढ़ सरकार की विभिन्न विकास योजनाओं और जन सरोकारों का जिक्र करते हुए कार्यकर्ताओं से कहा कि दुश्मन को कभी कमजोर नहीं समझना है और आखिरी किला फतह करने तक रुकना नहीं है। उन्होंने बजरंग बली का स्मरण करते हुए कहा कि राम काज कीजै बिनु मोहि कहां विश्राम। अब विजय प्राप्त करने तक एक क्षण भी रुकना नहीं है। योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह सहित राजनांदगांव जिले के सभी भाजपा प्रत्याशियों को जीत का आशीर्वाद प्रदान किया।
छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने सभा को संबोधित करते हुए भरोसा जताया कि जनता के उत्साह को देख कर मैं आश्वस्त हूँ कि भाजपा इस चुनाव में 65 प्लस सीट जीत कर निश्चित ही इतिहास रचेगी। राजनांदगांव क्षेत्र की सभी छह सीट भी हम जीतेंगे। उम्मीद है कि जनता का आशीर्वाद, प्रेम और समर्थन हमें आगे भी मिलता रहेगा। अपने भाषण से पूर्व उन्होंने क्षेत्र के सभी भाजपा प्रत्याशियों का परिचय कराते हुए उन्हें भी  जिताने का आग्रह किया।
मंगलवार को यहां तय शुभ मुहूर्त में नामांकन पत्र दाखिल करने के पूर्व मुख्यमंत्री ने अपने बंगले में तीन पुरोहितों के मंत्रोच्चारण के बीच विधिवत पूजा पाठ भी किया। फिर परिजनों सहित योगी आदित्यनाथ के चरण स्पर्श कर कलेक्ट्रेट में अपना नामांकन पत्र दाखिल किया। इस अवसर पर योगी आदित्यनाथ, भाजपा के प्रदेश प्रभारी अनिल जैन, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष धरमलाल कौशिक, मंत्री प्रेमप्रकाश पांडे, श्रीमती वीणा सिंह, सांसद पुत्र अभिषेक सिंह आदि उपस्थित थे।

Tuesday 23 October 2018

भाड़े पर भीख मंगवाने वाले गिरोह

हैदराबाद। बिरला औद्योगिक घराने द्वारा यहाँ निर्मित वेंकटेश्वर मंदिर के निकट इस साधु वेश विकलांग भिखारी पर जब मेरी नजर पड़ी, तो उसके पीछे खड़ी महिला की गतिविधियों की तरफ भी ध्यान गया| वह श्रद्धालुओं से   मिले सिक्के और नोट बटोर कर पास में चिलम पीते बैठे व्यक्ति को सौंप रही थी| विकलांग भिखारी से वस्तुस्थिति पूछने पर उसने बताया कि चीलम पीते व्यक्ति और इस महिला ने उसे दैनिक वेतन पर अनुबंधित किया हुआ है| दो वक्त की रोटी भी देते है| इस इलाके में अधिकतर भिखारी भाड़े पर बैठाये गए हैं| कुछ ढोंगी अपाहिज भिखारी भी है| कुछ अनाथ बच्चों से भी भीख मंगवाई जाती है| हर गिरोह का इलाका बंटा हुआ है|
यह हालात जानने के बाद चंद पंक्तियाँ लिपिबद्ध हो गई|
विकलांगता
.............
विकलांगता
शरीर में नहीं
सोच में होती है
शोषण
करते है हर हालात में
नहीं इसकी कोई सीमा
शोषक
भुनाते हैं हर स्थिति को
नहीं इनका कोई धर्म ईमान
नहीं कोई नाता मानवता से
रौंदते है बेबस बचपन को
खून चूसते हैं विवशता का
धन पशु बन कर ये जीते हैं
शोषक लोभवश स्वयं को
ज़िंदा रह कर मुर्दा बना लेते
कब्र पर भी दूकान सजाते है
अंततः
बेमौत मिट्टी में मिल जाते है !
@ दिनेश कुमार ठक्कर

Monday 22 October 2018

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनने पर किसानों का कर्ज़ माफ़ होगा - राहुल


(विशेष संवाददाता)
रायपुर (छत्तीसगढ़)। "छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनने पर किसानों का कर्ज़ माफ़ कर  दिया जाएगा। यह तोहफ़ा नहीं होगा बल्कि यह किसानों का हक़ है।" यह घोषणा सोमवार को अपरान्ह राजधानी  रायपुर के साइंस कालेज ग्राउण्ड में आयोजित किसान हुंकार रैली में अपने भाषण के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने की।
किसानों को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि यूपीए की सरकार ने सबसे ज्यादा किसानों का कर्ज़ माफ़ किया है। छत्तीसगढ़ में हमारी सरकार बनने पर वह किसानों के साथ खेत में खड़ी रहेगी। किसानों को कांग्रेस सरकार हर सम्भव मदद करेगी। आपको भी लगेगा कि सरकार आपके साथ है। आपको फसल का वाज़िब दाम मिलेगा। आपको कम कीमत पर चावल, गेहूं आदि नहीं बेचना पड़ेगा। उन्होंने यह भी कहा कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार फुड प्रोसेसिंग प्लांट भी लगाएगी। इसमें किसानों के परिवार और गाँव के युवाओं को काम भी मिलेगा।
राज्य में सरकारी अस्पतालों और शिक्षण संस्थाओं की जारी लूटखसोट की आलोचना करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि आज के छत्तीसगढ़ में यदि आप स्वयं या परिवार को अस्पताल ले जाते हैं तो पता लगता है कि दस पंद्रह लाख में आपरेशन होगा। आप कहाँ से इतनी रकम लाओगे? हमारी सरकार बनी तो आप और अपने परिवार का इलाज, आपरेशन सरकारी अस्पताल में कम से कम  रकम देकर करा सकोगे। छत्तीसगढ़ के किसान के बेटे, बेटी यूनिवर्सिटी, कॉलेज में भी कम फीस में शिक्षा ग्रहण कर सकेंगे।
प्रधानमंत्री को आड़े हाथ लेते हुए उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी देश की जनता, किसानों, युवाओं के नहीं बल्कि उद्योगपति अनिल अंबानी के चौकीदार हैं। केंद्र की सरकार आम जनता के साथ नहीं है। मोदी उद्योगपतियों, धनवानों के हितैषी हैं। विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चोकसी जैसे लोगों को मोदी सरकार ने देश से बाहर भगाया। मेहुल चोकसी ने तो किसानों का 35 हजार करोड़ रुपए चोरी किया। राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि अरूण जेटली की बेटी के बैंक खाते में मेहुल चोकसी ने कुछ रकम ट्रान्सफर भी की है। अनिल अंबानी पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि अनिल अंबानी की कंपनी ने कभी कोई हवाई जहाज नहीं बनाया है। फिर उनकी कंपनी को राफेल कॉन्ट्रैक्ट एचएएल से छीनकर दिलाया गया। यह कॉन्ट्रैक्ट मिलने से कुछ दिन पहले अनिल अंबानी ने संबंधित कंपनी बनाई। मोदी सरकार ने फ्रांस से 526 करोड़ का हवाई जहाज 1600 करोड़ रुपए में खरीदा। नरेंद्र मोदी अब आँख से आँख नहीं मिला पाते हैं।
प्रेस की आजादी के सन्दर्भ में राहुल गांधी ने कहा कि सेना से कम नहीं है पत्रकार। सच्चाई की रक्षा करना प्रेस का काम है। प्रेस का का काम जनता को सच बताना है। लेकिन मोदी सरकार पत्रकार, प्रेस को डरा धमका रही है। ताकि सच बाहर न आ सके।
किसान हुंकार रैली के मंच से प्रारम्भ में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि इस किसान सभा से राज्य में परिवर्तन की शुरूआत हुई है। मंच पर आते ही राहुल गांधी ने पूर्व सांसद करुणा शुक्ला का अभिवादन हाथ जोड़ कर किया। इस मौके पर एआईसीसी के महासचिव मोतीलाल वोरा, ओबीसी प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय अध्यक्ष और सांसद ताम्रध्वज साहू, पार्टी के राष्ट्रीय सचिव द्वय चन्दन यादव, अरूण उरांव, छत्तीसगढ़ प्रभारी पीएल पूनिया, नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव सहित प्रमुख कांग्रेस नेता मंचासीन थे।
राहुल गांधी ने एक निजी हॉटल में उक्त प्रमुख कांग्रेस नेताओं के साथ बैठक भी की। जिसमें विवादित शेष प्रत्याशियों के संबंध में विचार विमर्श किया गया। राजनांदगांव से सीएम रमन सिंह के खिलाफ करूणा शुक्ला को चुनाव लड़ाए जाने पर भी बात हुई। इस पर 23 अक्टूबर को दिल्ली में मुहर लगना तय माना जा रहा है । राहुल गांधी ने सर्व समाज और चुनिंदा एनजीओ के प्रतिनिधियों से भीे संक्षिप्त मुलाक़ात कर उनसे समर्थन माँगा।

रामोजी फ़िल्म सिटी : विश्व का सबसे बड़ा फ़िल्म स्टुडियो कॉम्पलेक्स



हैदराबाद से 25 किलोमीटर दूर नल्गोंडा मार्ग पर स्थित रामोजी फिल्म सिटी का अवलोकन यादगार रहा| दक्षिण भारत के विख्यात फिल्म निर्माता और मीडिया ग्रुप संचालक रामोजी राव ने वर्ष 1996 में इसकी स्थापना की थी| दो हजार एकड़ से भी अधिक क्षेत्रफल में विस्तृत इस आउटडोर इनडोर फिल्म सिटी में पचास शूटिंग फ्लोर हैं| यहां एक साथ पच्चीस फिल्मों की शूटिंग संभव है| प्री प्रोडक्शन से लेकर पोस्ट प्रोडक्शन तक सभी आधुनिक उपकरण,साधन सुविधाएँ उपलब्ध हैं| यहां पांच सौ से अधिक सेट लोकेशन हैं| एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन, सेन्ट्रल जेल, गाँव शहर के लोकेशन वाले विविध स्थाई सेट,चीन, यूरोप और देश के प्रमुख शहरों के बगीचों की अनुभूति कराने वाले गार्डन आदि मनमोहक हैं| रामोजी ग्रुप की इकाई उषा किरण मूवीज़ लिमिटेड ने हॉलीवुड की तर्ज पर इस फ़िल्म सिटी को साकार किया है| गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में दर्ज यह विश्व का सबसे बड़ा फ़िल्म स्टुडियो कॉम्पलेक्स माना जाता है| पर्यटन स्थल बतौर भी विकसित होने के कारण यहां हर वर्ष दस लाख से भी अधिक लोग आते हैं| गाइड के नेतृत्व में रेड विंटेज बस से फ़िल्म सिटी का भ्रमण आनंददायक और ज्ञानवर्धक होता है| एक्शन थियेटर, फ़िल्मी दुनिया, बोरासुरा मैजिशियन वर्कशॉप, बर्ड पार्क, यूरेका, स्प्रीट ऑफ रामोजी,फोर्ट फ्रंटियर स्टंट शो, लाइट कैमरा एक्शन, दादाजी लाइव टीवी शो, नृत्य प्रस्तुति सहित विविध राइड पर्यटकों को लुभाते हैं| लेकिन फिल्मों की शूटिंग के दरम्यान सेट पर पर्यटकों के जाने पर सख्त मनाही है| उसके बावजूद हर पर्यटक भ्रमण के बाद सुखद अनुभूति के साथ लौटता है|
@ रिपोर्ताज : दिनेश कुमार ठक्कर

Sunday 21 October 2018

न्यूज़ पोर्टल "एएम पीएम टाइम्स डॉट कॉम" का विधिवत शुभारम्भ



न्यूज़ पोर्टल के कारण पत्रकारिता ने अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप ले लिया है ... जायसवाल 
बिलासपुर (छत्तीसगढ़). आज तकनीकी माध्यम इतना विकसित हो गया है कि अगर हम कहीं भी रहें या किसी भी छोटी जगह में रहकर पत्रकारिता करते हैं तो खबरों के प्रकाशन, प्रसारण के बाद उसका प्रभाव और विस्तार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वतः हो जाता है . पहले खबरों के प्रसारण का भौगोलिक दायरा सीमित हुआ करता था लेकिन अब न्यूज पोर्टल के जरिए इसने अंतर्राष्ट्रीय रूप ले लिया है . यह बात शुक्रवार को दोपहर मुख्य वक्ता वरिष्ठ कथाकार, पत्रकार सतीश जायसवाल ने न्यूज वेब पोर्टल “एएम पीएम टाइम्स डॉट कॉम” के शुभारम्भ अवसर पर कही .
उन्होंने अपनी शुभेच्छा व्यक्त करते हुए कहा कि एएम पीएम टाइम्स डॉट कॉम शीर्षक से स्पष्ट है कि इसका मूल उद्देश्य क्या है . सुबह से लेकर शाम और शाम से लेकर सुबह तक की हर पल की खबरों को इसमें स्थान मिलेगा . श्री जायसवाल ने उम्मीद जाहिर करते हुए कहा कि इस समय मीडिया में साहित्य, कला और संस्कृति की खबरों का प्रकाशन लगातार कम होता जा रहा है . इस पोर्टल में ऐसी खबरों को प्राथमिकता अवश्य मिलेगी .
बिलासपुर से प्रकाशित होने वाले दैनिक “इवनिंग टाइम्स” के प्रधान संपादक और वरिष्ठ साहित्यकार नथमल शर्मा ने अपने आशीर्वचन में कहा कि इस पोर्टल के प्रधान संपादक दिनेश भाई का उत्साह जाहिर करता है कि वे इसमें कामयाब अवश्य होंगे .  देश, समाज के सरोकारों और पत्रकारिता के प्रति वे सदैव प्रतिबद्ध रहेंगे . उन्होंने कहा कि दिनेश भाई की पहचान केवल पत्रकारिता तक सीमित नहीं है . इन्होंने सिने निर्देशक के अलावा साहित्य, सिनेमा, कला और संस्कृति की रिपोर्ताज के क्षेत्र में भी नाम कमाया है . इनके अनुभव का लाभ इस पोर्टल को जरूर मिलेगा . श्री शर्मा ने न्यूज पोर्टल की महत्ता प्रतिपादित करते हुए कहा कि इसके कारण अब देश-विदेश के  प्रतिष्ठित अख़बारों की प्रसार संख्या भी घट गई है . न्यूज पोर्टल के कारण अब खबरें तत्काल पूरे विश्व में प्रसारित हो जाती हैं . हम समय के साथ अगर स्वयं को आधुनिक तकनीक से जोड़ते हैं तो हमारी पहचान बहुत जल्द कायम हो जाती है . सोशल मीडिया की ताकत काफी बढ़ गई है इसके कारण प्रकाशन की दुनिया बदल गई है . उन्होंने कहा कि पत्रकारिता में काफी चुनौतियाँ हैं . इसका स्वरूप भी बेहद बदल गया है . हमारा दायित्व है कि हम स्वयं को टटोलकर पत्रकारिता के मूल तत्व को बचाए रखें .
वरिष्ठ साहित्यकार द्वारिका प्रसाद अग्रवाल ने भी इस अवसर पर कहा कि एएम पीएम टाइम्स के प्रधान संपादक दिनेश ठक्कर जिद्दी किस्म के पत्रकार है . इनका जिद्दी होना ही इनका सबसे बड़ा गुण है . एक पत्रकार या संपादक हमेशा नियंत्रण में रहता है . उसे खुलकर काम करने का अवसर नहीं मिलता लेकिन उम्मीद है कि दिनेश ठक्कर अपने गुणों के कारण खुलकर इस पोर्टल के लिए कार्य करेंगे .
बिलासपुर प्रेस क्लब के अध्यक्ष तिलक राज सलूजा ने भी कहा कि विजयादशमी के अवसर पर इस न्यूज पोर्टल की शुरुआत स्वस्थ पत्रकारिता के मूल्यों को स्थापित करने की दिशा में एक शुभ संकेत है .         
कार्यक्रम का संचालन करते हुए वरिष्ठ पत्रकार राजेश दुआ ने प्रारंभ में न्यूज पोर्टल एएमपीएम टाइम्स डॉट कॉम के उद्देश्यों पर प्रकाश डाला . उन्होंने पोर्टल के प्रधान संपादक दिनेश कुमार ठक्कर के सन्दर्भ में कहा कि उनका बरसों पुराना सपना साकार हुआ है . आज के दौर की मौजूं खबरें और उनके विश्लेषण के अलावा  साहित्य, कला और संस्कृति से संबंधित समाचार, विचार भी इस न्यूज पोर्टल में प्रमुख रूप से समाहित होंगे .
इस अवसर पर छत्तीसगढ़ सक्रिय पत्रकार संघ के प्रदेश अध्यक्ष राज गोस्वामी , बिलासपुर में पदस्थ डिप्टी कलेक्टर आशुतोष चतुर्वेदी , ईडीएम आफ़ताब अहमद खान , न्यूज पोर्टल बिलासपुर लाइव के प्रधान संपादक राजेश अग्रवाल , वरिष्ठ  पत्रकार और कवि भास्कर मिश्र ( न्यूज पोर्टल सीजी वॉल) टीवी चैनल न्यूज नेशन के ब्यूरो चीफ श्याम पाठक तथा वेब जर्नलिस्ट लोकेश बाघमारे भी उपस्थित थे .

बिलासपुर (छत्तीसगढ़)। न्यूज़ पोर्टल "एएम पीएम टाइम्स  डॉट कॉम " के शुभारम्भ कार्यक्रम से संबंधित समाचार प्रकाशित करने के लिए श्री नीलकंठ पारटकर (संपादक - नवभारत, बिलासपुर) और श्री नथमल शर्मा (संपादक - इवनिंग टाइम्स, बिलासपुर) का आभार।

Wednesday 17 October 2018

"मिश्र की कविताएँ उद्वेलित करती हैं"


बिलासपुर, छत्तीसगढ़। देश के प्रसिद्ध कवि माताचरण मिश्र (भोपाल) ने बुधवार को दोपहर बिलासपुर प्रेस क्लब में अपनी विभिन्न सन्दर्भों वाली कविताओं का पाठ किया। इसमें मुख्य रूप से पगडंडी, आत्म संभवा, नचनिये, मुक्ति, विसंगति, अजानबाहु, आदमी और पेड़ के बारे में, तृष्णा के तट आदि कवितायें शामिल थी।
माताचरण मिश्र की कविताओं की तारीफ़ करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार सतीश जायसवाल ने कहा कि इनकी कवितायें पृथक शैली की हैं। बिलासपुर से भोपाल में बस जाने के बाद भी इस शहर की व्यथा इनकी कविताओं में झलकती है। नवभारत के पूर्व सम्पादक बजरंग केडिया ने  कहा कि माताचरण मिश्र बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। इनकी कविताओं में हर वर्ग का दर्द झलकता है। बिलासपुर का मिजाज़ भी इनकी कविताओं में रूपायित होता है। वरिष्ठ शायर खुर्शीद हयात ने कहा कि इनकी कविताओं में माँ अपने शाब्दिक अर्थ से अलग स्वरूप में व्यक्त होती है। इनकी शैली अनूठी है।
इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यकार द्वारिका प्रसाद अग्रवाल, राम कुमार तिवारी, साकिर अली, भास्कर मिश्रा, ठाकुर बलदेव सिंह, कमल दुबे, राजेश दुआ, निर्मल माणिक आदि उपस्थित थे। गोष्ठी का संचालन प्रेस क्लब के सचिव विश्वेश ठाकरे और आभार प्रदर्शन प्रेस क्लब के अध्यक्ष तिलकराज सलूजा ने किया।

बबीता जी के साथ झूमे रासधारी






बिलासपुर, छत्तीसगढ़। भाटिया फ्यूल्स द्वारा फाउंडेशन क्रिकेट एकेडमी ग्राउण्ड में आयोजित तीन दिवसीय रास डांडिया महोत्सव के समापन अवसर पर मंगलवार को आधी रात तक बिलासपुर के रासधारी बबीता जी के साथ झूम कर खेले। सब टीवी पर प्रसारित होने वाले धारावाहिक "तारक मेहता का उल्टा चश्मा" में बबीता जी का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री मुनमुन दत्ता (मुम्बई) मुख्य मेहमान थीं। कार्यक्रम के प्रारम्भ में आयोजक प्रिंस भाटिया ने भव्य मंच पर बबीता जी का पुष्प गुच्छ और स्मृति चिन्ह देकर आत्मीय स्वागत किया।
 अपने संक्षिप्त वक्तव्य में बबीता जी ने कहा कि, मुम्बई सहित गुजरात के महानगर में वे नवरात्रि महोत्सव में डांडिया गरबा रास खेल चुकी हैं। उनकी तुलना में यहां का भव्य और आकर्षक आयोजन कमतर नहीं है। गुजरात की पारंपरिक वेशभूषा में सज्जित डांडिया गरबा रास खेलने वालों का जोश देख कर मुझे प्रसन्नता हुई है। यहां का आयोजन मेरे लिए सरप्राइज है। अपने सामाजिक सन्देश में उन्होंने कहा कि लड़कियों को निडर, शिक्षित होकर आत्मनिर्भरता के साथ हर क्षेत्र में अग्रणी रहना चाहिए। हर चुनौतियों का धैर्य और साहसपूर्वक सामना करना चाहिए।
रास डांडिया महोत्सव के समापन अवसर पर भी  "ओम शांति ओम" फेम गायिका रिया भट्टाचार्य, यू ट्यूब सिंगर श्रेया और एण्ड टीवी स्टार सिंगर ईशान खान ने गरबा लोक गीतों के अलावा रीमिक्स स्टाइल के चर्चित फ़िल्मी गीतों को दिलकश अंदाज़ में गाकर बिलासपुर वासियों को आधी रात तक झूमने को विवश कर दिया। एंकर अमीषा और मनुराज ने बख़ूबी संचालन किया। इस महोत्सव में वरिष्ठ आयोजक अमोलक सिंह भाटिया और गुरमीत सिंह भाटिया का भी संयोजन, निर्देशन बेहद उपयोगी रहा। महोत्सव के अंत में विजयी प्रतियोगियों को पुरस्कृत किया गया।
(फोटो - दिनेश कुमार ठक्कर)

Tuesday 16 October 2018

रास डांडिया ने मचाई धूम







बिलासपुर (छत्तीसगढ़)। भाटिया फ्यूल द्वारा फाउंडेशन क्रिकेट एकेडमी ग्राउंड में आयोजित तीन दिवसीय रास डांडिया महोत्सव आकर्षण का केंद्र बन गया है। सोमवार की रात को भी रास डांडिया खेलने वालों और दर्शकों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी। "ओम शान्ति ओम" फेम रिया भट्टाचार्य और एण्ड टीवी स्टार सिंगर ईशान खान के मधुर  गरबा गीत गायन पर आधी रात तक लोगों ने पारंपरिक और आधुनिक शैली में रास डांडिया खेला। आर्केस्ट्रा के साज़िंदों ने रीमिक्स स्टाइल में वादन के जरिए भी गरबा गायकी को श्रवणीय बना दिया। माँ जगदम्बे की आरती के बाद कार्यक्रम की शुरूआत हुई। प्रारम्भ में आयोजक अमोलक सिंह भाटिया, गुरमीत सिंह भाटिया और प्रिंस भाटिया ने आमन्त्रित मेहमान वरिष्ठ कांग्रेस नेता अशोक अग्रवाल, राधे भूत, अटल श्रीवास्तव, नरेंद्र बोलर, राजेश पांडे आदि का मंच पर पुष्प गुच्छ से स्वागत अभिनन्दन किया।
Photo : Dinesh Kumar Thakkar

Sunday 14 October 2018

आकर्षण का केंद्र रहा युगल रास




बिलासपुर। श्री गुजराती समाज, टिकरापारा, बिलासपुर (छत्तीसगढ़) द्वारा आयोजित नवरात्रि महोत्सव के तहत चौथी रात्रि को युगल रास सालसा के साथ आकर्षण का केंद्र रहा। इसके अलावा पारंपरिक वेशभूषा में सज्जित युवक युवतियों द्वारा तीन ताली, छकड़ी और डांडिया रास मनमोहक अंदाज में खेला गया। बालक, बालिकाओं द्वारा भी चित्ताकर्षक रास खेला गया। इस नवरात्रि के भी मुख्य पुजारी श्री सुरेन्द्र मोहन तिवारी और श्री राजेन्द्र प्रसाद शुक्ला हैं।

Saturday 13 October 2018

मंदिर निर्माण से भाजपा को लाभ नहीं : मायावती

बिलासपुर . बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने कहा है कि बीजेपी और आरएसएस के लोग और उनकी सरकारें पूंजीवादी व्यवस्था की समर्थक हैं और हिंदुत्व की आड़ में विभिन्न हथकंडे इस्तेमाल कर रही है. उत्तरप्रदेश में राम मंदिर निर्माण कुछ ज्यादा ही जोर पकड़ रहा है । उसी तर्ज पर इनकी योजना पूरे देश में छोटे-छोटे मंदिर बनाने की है लेकिन इससे उन्हें कोई लाभ होने वाला नहीं है . बीएसपी सुप्रीमों मायावती बिलासपुर में शनिवार को दोपहर खेल परिसर में विशाल जनसभा को संबोधित कर रही थी .
प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) और बहुजन समाज पार्टी के बीच हुए गठबंधन के तहत पहली संयुक्त चुनावी सभा में मायावती ने बहुचर्चित राफेल रक्षा सौदे के सम्बन्ध में कहा कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों का दामन पाक साफ़ नहीं है . कांग्रेस के समय बोफोर्स रक्षा सौदे की तरह केंद्र की वर्तमान सरकार द्वारा किए गए राफेल रक्षा सौदे में हुए कथित घोटाले के सम्बन्ध में अभी तक कोई संतोषजनक जवाब नहीं आया है.
मायावती ने छत्तीसगढ़ , मध्यप्रदेश और राजस्थान में कांग्रेस के साथ बीएसपी द्वारा गठबंधन न करने के सम्बन्ध में कहा कि कांग्रेस की स्थिति “खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे” जैसी हो गई है . यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि बीजेपी के दबाव और भय में आकर गठबंधन नहीं किया गया .  उन्होंने कहा कि यह निराधार प्रचार है और इसे हमारी  पार्टी के लोगों को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए . 
मायावती ने दोनों पार्टी के कार्यकताओं और मतदाताओं से अपेक्षा की कि हमारी कोशिश होनी चाहिए कि छत्तीसगढ़ में यह गठबंधन अकेले अपने दम पर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में सफल हो जाए . उन्होंने कहा कि अगर हमारी सरकार बनी तभी प्रदेश के दलितों , आदिवासियों , पिछड़ों, किसानों तथा व्यापारियों का उत्थान संभव है . उन्होंने आगे कहा कि अजीत जोगी के नेतृत्व में हमारे गठबंधन की सरकार बनने से प्रदेश के लोग स्वाभिमान की जिंदगी गुजार सकेंगे और प्रदेश में चल रही नक्सली गतिविधियों पर भी अंकुश लगेगा . उन्होंने कहा कि प्रदेश की बदहाल स्थिति के लिए बीजेपी और कांग्रेस पार्टी एंड कंपनी कसूरवार है .
मायावती ने कहा पिछले 15 सालों से छतीसगढ़ में एक ही पार्टी , भाजपा का राज चल रहा है लेकिन आम आदमी का कोई विकास , उत्थान नहीं हुआ है.  छत्तीसगढ़ के अलग  राज्य बनने के बाद यह उम्मीद की जा रही थी कि यहाँ युद्ध स्तर पर विकास का काम होगा लेकिन निराशा ही हाथ लगी .
उन्होंने केंद्र की मोदी सरकार को एक बार फिर आड़े हाथ लेते हुए कहा कि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से पूर्व जितने भी वादे किए गए थे उसके एक चौथाई  वादे भी पूरे नहीं किए गए . उन्होंने सोदाहरण समझाया कि देश के गरीबों के खातों में 100 दिन के भीतर विदेशों से काला धन वापस लाकर 15 से 20 लाख रूपए देने का वादा किया गया था  लेकिन साढ़े चार साल के बाद भी एक पैसा किसी के पास नहीं आया . उसी प्रकार किसानों को उनके उत्पादन का दोगुना समर्थन मूल्य दिलाने और आवश्यक सामग्रियों की कीमत कम करने का वादा भी पूरा नहीं कर जनता के साथ विश्वासघात किया गया .
मायावती ने केंद्र की मोदी सरकार की आर्थिक नीतियों , नोटबंदी  और जीएसटी के बुरे असर पर भी कटाक्ष किया और कहा कि इससे महंगाई  और बढ़ गई , पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस की कीमतों में लगातार इजाफा हुआ . 
उन्होंने मतदाताओं को सचेत करते हुए कहा कि केंद्र में बीजेपी को सत्ता में आने से रोकना होगा लेकिन उससे पहले यह जरूरी है कि राज्य में और खासकर छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार को सत्ता से बाहर करना होगा . उन्होंने बीजेपी के सत्ता हथियाने के हथकंडों और प्रलोभन भरे चुनावी घोषणा पत्र से भी लोगों को सावधान रहने को कहा.
मायावती के संबोधन के बाद जनता कांगेस के सुप्रीमों अजीत जोगी ने भी छत्तीसगढ़ी भाषा में सभा को संबोधित किया. उन्होंने कहा कि बहुजन समाज पार्टी और जनता कांग्रेस के विचार एक जैसे हैं . हमारा विश्वास है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा का रथ रुकेगा और प्रदेश में हमारे गठबंधन की सरकार बनेगी . उन्होंने आगे कहा कि 2019 में भी हमारा गठबंधन जारी रहेगा और मायावती के नेतृत्व में अन्य प्रदेशों में भी इसकी शुरुआत क्षेत्रीय पार्टियों से होगी . अजीत जोगी ने हुंकार भरी कि हमारा संकल्प है कि आने वाले लोकसभा चुनाव में बहन मायावती को देश का प्रधानमंत्री बनाना है .

उइके ने कांग्रेस को दिया जोर का झटका

बिलासपुर. छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष और पाली-तानाखार विधानसभा क्षेत्र के विधायक रामदयाल उइके ने शनिवार को सुबह भाजपा में प्रवेश कर कांग्रेस को तगड़ी  चुनावी पटखनी दी है । उनके इस कदम से कांग्रेस आलाकमान समेत सभी बड़े नेता हतप्रभ हैं। सत्रह साल बाद उनकी घर वापसी हुई है।
रामदयाल उइके ने शनिवार को सुबह बिलासपुर स्थित एक होटल के बंद कमरे में हुई बैठक के दौरान भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह की मौजूदगी में विधिवत भाजपा की सदस्यता ग्रहण की . उनको भाजपा में  प्रवेश कराने के पीछे मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह की विशेष भूमिका रही।  मुख्यमंत्री डॉ सिंह रामदयाल उइके को अपने साथ अमित शाह के पास मिलाने और भाजपा में प्रवेश कराने लाए थे । यद्यपि पिछले कुछ समय से रामदयाल उइके को भाजपा में प्रवेश कराने के सम्बन्ध में संगठन के केन्द्रीय स्तर पर विचार-विमर्श हो रहा था जिस पर शनिवार को सुबह अधिकृत मुहर लग गई .
बैठक समाप्त होने के बाद मुख्यमंत्री डॉ सिंह ने होटल की लॉबी में आयोजित एक संक्षिप्त पत्रकार वार्ता के दौरान रामदयाल उइके के भाजपा प्रवेश की अधिकृत घोषणा की .
रामदयाल उइके ने अपने भाजपा प्रवेश के सन्दर्भ में पत्रकारों से अनौपचारिक बातचीत में कहा कि एक लम्बे अरसे से कांग्रेस में उनका दम घुट रहा था . कांग्रेस अपने पुराने सिद्धांतों और आदर्शों से भटक गई है . पार्टी में गन्दी सीडी की राजनीति हावी हो गई है और इससे राष्ट्रीय पार्टी की छवि बेहद धूमिल हुई है . उइके ने आगे कहा कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ने गन्दी सीडी की राजनीति को प्रोत्साहित कर पार्टी का काफी अहित किया है . मेरी मांग के बावजूद आलाकमान द्वारा उन्हें पद से नहीं हटाया गया जिसका खामियाजा इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को भुगतना पड़ेगा .
उइके ने यह भी कहा कि कांग्रेस आदिवासी, पिछड़े और गरीब लोगों की लगातार उपेक्षा कर रही है . चूँकि मैं स्वयं आदिवासी क्षेत्र का प्रतिनिधितत्व करता हूँ  इसलिए मुझे दिली तौर पर काफी पीड़ा हो रही थी .
उइके ने कहा कि प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह आदिवासी और पिछड़े क्षेत्रों का समुचित विकास करने में जुटे हुए हैं . वे पीड़ितों की तकलीफ को समझते है . वे उनकी समस्याओं का भी समाधान कर रहे हैं इसलिए मैंने  मुख्यमंत्री और भाजपा की विकासोन्मुख नीतियों से प्रभावित होकर भाजपा में प्रवेश कर घर-वापसी की है .
पत्रकारों के एक सवाल के जवाब में उइके ने कहा कि उनके निर्वाचन क्षेत्र पाली-तानाखार से भाजपा की टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ने के सम्बन्ध में राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से फ़िलहाल कोई चर्चा नहीं हुई है . पार्टी का जहाँ से भी चुनाव लड़ने का आदेश होगा तो वे उस पर अवश्य अमल करेंगे .
विदित हो कि रामदयाल उइके कांग्रेस की स्क्रीनिंग कमेटी से बेदखल किए जाने को लेकर खासे नाराज थे हालाँकि पाली-तानाखार से उनको फिर से कांग्रेस का टिकट दिया जाना तय था . बारह विधायको के साथ उइके ने वर्ष 2000 में भाजपा छोड़कर जोगी सरकार की कांग्रेस का हाथ थाम लिया था . उस वक्त वे मरवाही से भाजपा विधायक थे और मुख्यमंत्री अजीत जोगी के लिए उन्होंने अपनी यह सीट कुर्बान की थी .

गुजराती समाज का पारंपरिक रास गरबा


बिलासपुर। श्री गुजराती समाज, टिकरापारा, बिलासपुर (छत्तीसगढ़) के प्रांगण में आयोजित नवरात्रि महोत्सव की तीसरी रात्रि मंजीरा रास को समर्पित रही। पचास वर्ष और उससे अधिक आयु के रासधारियों ने मनमोहक ताली और डांडिया रास प्रस्तुत किया। इसके पूर्व बालक, बालिकाएं, युवक , युवतियों ने भी विभिन्न रास प्रस्तुत किये। गुजरात के सुरेन्द्र नगर से आये नितिन साधु एण्ड ग्रुप के गरबा गायक कासम भाई मोवर, बाबू भाई और गायिका रीना बारोट ने प्राचीन तथा नए गरबा गीतों की दिलकश प्रस्तुति दी। ढोल पर अगर सिंह नायक, समीर, आर्गन पर नितिन साधु, बेज पर संजय , रोटा पर सुनील नायक और ऑक्टोपेट पर सुधीर भाई ने आकर्षक संगत की। रास गरबा के अंत में विभिन्न वर्ग के विजयी प्रतियोगियों को पुरस्कृत किया गया। इस नवरात्रि में आयोजित बेस्ट गरबा प्लेयर कॉम्पिटिशन के परिणाम इस प्रकार हैं -
पहली रात्रि - 7 वर्ष से कम आयु की बालिकाएं : प्रथम - दिवा कक्कड़, द्वितीय - तृप्शा जेठवा, 7 वर्ष से कम आयु के बालक: प्रथम - पार्थ जोशी, द्वितीय - अरहम, 7 वर्ष से 14 वर्ष तक के बालक :  प्रथम- करण दोषी, द्वितीय - आदित्य भानुशाली, 7 वर्ष से 14 वर्ष तक की बालिकाएं : प्रथम - वंशिका कक्कड़, द्वितीय - दिव्या द्रोण, अविवाहित युवक : प्रथम - श्रेयांश बाराई, द्वितीय - हार्दिक पोपट, अविवाहित युवतियां : प्रथम- यामिनी सोनी, द्वितीय - हिया सोनछात्रा, विवाहित पुरूष : प्रथम - केतन सुतारिया, द्वितीय- कुशल शाह, विवाहित महिलायें : प्रथम - सोनल बेन सोनी, द्वितीय - स्नेहा बेन जोबनपुत्रा।

 दूसरी रात्रि - 7 वर्ष से कम आयु की बालिकाएं : प्रथम - प्रियल ठक्कर, द्वितीय - निशिका सचदेव, 7 वर्ष से कम आयु के बालक: प्रथम - जश सोनछात्रा, द्वितीय - अहन शाह, 7 वर्ष से 14 वर्ष तक के बालक :  प्रथम- ओम भानुशाली, द्वितीय - विशाल कक्कड़, 7 वर्ष से 14 वर्ष तक की बालिकाएं : प्रथम - सारा मेहता, द्वितीय - महक गज्जर, अविवाहित युवक : प्रथम - हेतल सुब्बा, द्वितीय - जुबिन त्रिवेदी, अविवाहित युवतियां : प्रथम- श्रेया मिरानी,  द्वितीय - स्वाति सवानी, विवाहित पुरूष : प्रथम - अखिलेश ठक्कर, द्वितीय- दिलीप भाई तेजानी, विवाहित महिलायें : प्रथम - करिश्मा देसाई, द्वितीय - धारा मेहता।

Friday 12 October 2018

घुसपैठियों को बाहर निकालेंगे : शाह

घुसपैठियों को चुन चुन कर देश से बाहर निकालेंगे : शाह
बिलासपुर। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने कहा है कि देश में लाखों घुसपैठिए काबिज हैं और दीमक की तरह देश को चाट रहे हैं। हमारी सरकार ने इस मामले में चिंता जाहिर की है। आसाम में हम सिटीजन रजिस्टर के जरिए 40 लाख घुसपैठियों को चिन्हित करने जा रहे हैं। हम वर्ष 2019 के बाद आसाम ही नहीं बल्कि देश के कोने कोने से ऐसे घुसपैठियो को चुन-चुनकर देश से बाहर निकालेंगे। देश को नक्सलवाद , आतंकवाद और घुसपैठियों से मुक्त करना ही हमारी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है। श्री शाह शुक्रवार को बिलासपुर के साइंस कालेज ग्राउंड में भाजपा कार्यकताओं को संबोधित कर रहे थे।
 उन्होंने कहा है कि छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव को इस बार दो-तीन सीटों के सामान्य बहुमत से नहीं बल्कि 65 पार के बड़े अंतर से जीतना है। श्री शाह ने बूथ समिति एवं बूथ पालक सम्मलेन में मौजूद कार्यकर्ताओ से  कहा कि अब चुनाव में जितने भी दिन बचे हैं , उसका एक-एक क्षण 65 पार की लड़ाई के लिए लगाना होगा। छत्तीसगढ़ में सिर्फ विजय ही प्राप्त नहीं करना है बल्कि यहाँ से कांग्रेस को समूल उखाड़ फेंकना है।
अमित शाह ने प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह की तारीफ़ करते हुए कहा कि डॉ सिंह ने छत्तीसगढ़ के विकास में अनेक कदम उठाते हुए प्रदेश को खुशहाल बनाया है। प्रदेश की 15 साल पुरानी कांग्रेस की जोगी सरकार के समय प्रदेश का बजट मात्र 9 हजार करोड़ रूपए था जबकि 15 साल की रमन सरकार ने प्रदेश के बजट में 10 गुना वृद्धि करते हुए इसे 94 हजार 775 करोड़ रूपए कर दिया है। पिछली सरकार के समय प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय मात्र 13 हजार रूपए थी जबकि अभी 92 हजार रूपए हो गई है।
 श्री शाह ने छत्तीसगढ़ के पीडीएस सिस्टम के सन्दर्भ में कहा कि खाद्यान्न उत्पादन और विकासोन्मुख कार्यक्रमों में प्रदेश अव्वल रहा है। प्रदेश से नक्सल समस्या को भी रमन सरकार ने लगभग ख़त्म करने में सफलता प्राप्त की है।
अमित शाह ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गाँधी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि राहुल छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनाने के सपने संजोये हुए हैं। राहुल को पहले इतिहास उठा कर देखना चाहिए। वर्ष 2014 से 2018 तक देश में जितने भी चुनाव हुए हैं , भारतीय जनता पार्टी सबमें विजयी हुई है। हरियाणा, झारखण्ड, कश्मीर, मणिपुर, आसाम, मेघालय, हिमाचल, त्रिपुरा, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, गुजरात , गोवा , नागालैंड सहित 19 प्रदेशों में कांग्रेस की सरकार गई और भाजपा की सरकार बनी।  उन्होंने दावा करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार अंगद का पांव है जिसे कोई  भी उखाड़ नहीं सकता।
श्री शाह ने कांग्रेस के राष्ट्रीय और प्रादेशिक नेतृत्व  को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि राहुल छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनाने का सपना पाले हुए हैं। प्रदेश में माँ-बेटियों को शर्मसार करने वाले और गन्दी सीडी बनाकर दिखाने वाले के नेतृत्व में सरकार बनाने का सपना कभी पूरा नहीं होगा। उन्होंने सवाल किया कि छत्तीसगढ़ में  जो अपनी ही पार्टी की टिकट को ही बेच खाएं , ऐसे व्यक्ति के नेतृत्व में क्या चुनाव जीता जा सकता है ? कांग्रेस को पहले छत्तीसगढ़ की माँ-बेटियों से माफ़ी मांगनी चाहिए। हालांकि कांग्रेस की न कोई नीति है और न ही कोई सिद्धांत। कांग्रेस में सिर्फ भ्रष्टाचार है। कांग्रेस जब-जब शासन में रही उसने देश की सुरक्षा को ताक पर रखा।

Thursday 11 October 2018

छत्तीसगढ़ सक्रिय पत्रकार संघ द्वारा पांच अक्टूबर को बिलासपुर स्थित आईएमए सभागार में प्रादेशिक पत्रकार सम्मलेन और पत्रकार अलंकरण समारोह आयोजित किया गया। इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार-साहित्यकार दिनेश ठक्कर बापा (बिलासपुर) को भी श्रीफल, शाल,  अलंकरण,  स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया गया। इसके पूर्व उन्होंने अपनी कविता "मुट्ठी भर छाँव " का पाठ  भी किया। समारोह में पत्रिका "दुनिया इन दिनों " के प्रधान सम्पादक और  वरिष्ठ कवि डा. सुधीर सक्सेना (दिल्ली), "धर्मयुग "के पूर्व उप संपादक हरीश पाठक (मुम्बई), " जनसत्ता " मुम्बई के पूर्व फीचर सम्पादक धीरेन्द्र अस्थाना (मुम्बई), "नव भारत" ,बिलासपुर के सम्पादक नीलकंठ पारटकर , वरिष्ठ कहानीकार सतीश जायसवाल (बिलासपुर) आदि विशेष मेहमान बतौर उपस्थित थे।
छत्तीसगढ़ सक्रिय पत्रकार संघ द्वारा पांच अक्टूबर को बिलासपुर स्थित आईएमए सभागार में प्रादेशिक पत्रकार सम्मलेन और पत्रकार अलंकरण समारोह आयोजित किया गया। इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार-साहित्यकार दिनेश ठक्कर बापा (बिलासपुर) को भी श्रीफल, शाल,  अलंकरण,  स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया गया। समारोह में पत्रिका "दुनिया इन दिनों " के प्रधान सम्पादक और  वरिष्ठ कवि डा. सुधीर सक्सेना (दिल्ली), "धर्मयुग "के पूर्व उप संपादक हरीश पाठक (मुम्बई), " जनसत्ता " मुम्बई के पूर्व फीचर सम्पादक धीरेन्द्र अस्थाना (मुम्बई), "नव भारत" ,बिलासपुर के सम्पादक नीलकंठ पारटकर , वरिष्ठ कहानीकार सतीश जायसवाल (बिलासपुर) आदि विशेष मेहमान बतौर उपस्थित थे।