Sunday 28 October 2018

साहित्य के क्षेत्र में घुसपैठिए बहुत आ गए हैं - सतीश जायसवाल




बिलासपुर, छत्तीसगढ़। "साहित्य के क्षेत्र में घुसपैठिए बहुत आ गए हैं। सोशल मीडिया का स्पेस काफी खुल गया है। इसका सदुपयोग और दुरूपयोग दोनों हो रहा है।फिलहाल सोशल मीडिया का दुरूपयोग कुछ ज्यादा ही हो रहा है। इससे कचरा ज्यादा इकट्ठा हो गया है। कल को कचरा छांटने में दिक्कत जाएगी।" यह व्यथा देश के प्रसिद्ध वरिष्ठ पत्रकार-साहित्यकार श्री सतीश जायसवाल ने शनिवार, 27 अक्टूबर को न्यूज़ पोर्टल "एएम पीएम टाइम्स" को दिए गए विशेष साक्षात्कार के दौरान व्यक्त की।
 वर्तमान में साहित्य सृजन के स्तर से क्या आप संतुष्ट हैं, इसके प्रत्युत्तर में श्री जायसवाल ने दुःख जाहिर करते हुए  कहा कि, साहित्य का स्तर लगातार गिर रहा है। वैसे तो दुनिया के हर क्षेत्र में उतार चढ़ाव आता है। हमने जब साहित्य सृजन शुरू किया तो उस समय इस क्षेत्र में बड़े लोग थे। हमारे बाद जो लोग आए और आ रहे हैं, हो सकता है कि कल को ये लोग बड़े होंगे। शायद आज हम उनकी क्षमताओं को पहचान नहीं पा रहे हैं। अभी ये बीच का समय है, जिसमें मैं हूँ। पहले और अभी के लोगों को देख पढ़ रहा हूँ। मैं तटस्थ होकर उनका मूल्यांकन कर रहा हूँ। साथ ही निराश भी हो रहा हूँ। हालांकि आदतन मैं निराश नहीं होता हूँ। उनको भी समय मिलना चाहिए। उम्मीद है कि वे स्वयं को सुधारेंगे। कल ये लोग बड़े निकलेंगे। इन पर भरोसा करना चाहिए।
अच्छे साहित्यकार के गुणों का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि, मेरा यह मानना है कि अगर कोई साहित्यकार है तो उसको अपने समय के साहित्य, साहित्यकारों, कलाकारों, उसके कलारूपों की भी जानकारी होनी चाहिए। साहित्यकार, मन से होता है। केवल टेबल पर लिखने से नहीं होता है। उसके भीतर भावनाएं, संवेदनाएं होनी चाहिए। नया देखने की क्षमता होनी चाहिए।
बिलासपुर के डा. शंकर शेष, श्रीकांत वर्मा की साहित्य- परम्परा के विकास के संदर्भ में श्री जायसवाल ने इस बात पर जोर दिया कि मैं ही नहीं, हर किसी को उस परम्परा का हिस्सा होना होगा। आगे भी हम उसका हिस्सा हो जाएंगे। हालांकि श्रीकांत वर्मा से पहले जगन्नाथ प्रसाद भानु से परम्परा शुरू हुई थी। उससे पहले भी थी, जो इतिहास में दर्ज है।
विश्वविद्यालयों में साहित्य और साहित्यकारों पर होने वाले शोध कार्यों की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि, यूनिवर्सिटी में होने वाले शोध कार्य निराशाजनक हैं। ये झूठ और बेईमानी से भरे हुए हैं। सरकारी नौकरी के कारण कई लोगों को शोध निदेशक होने का हक़ हासिल हो गया है। वे अपने नाते रिश्तेदारों पर शोध करा रहे हैं, जिनका साहित्य में कोई योगदान नहीं है। इससे साहित्य को नुकसान हो रहा है। छोटे राज्यों के अपने कुछ नुकसान भी हैं। यहां राजनैतिक क्षमता तो हासिल हो गई है, परंतु साहित्य को क्षति हुई है।
साहित्य के क्षेत्र में प्रदत्त प्रतिष्ठित पुरस्कारों की चयन प्रक्रिया के सवाल पर श्री जायसवाल ने अफ़सोस जाहिर करते हुए कहा कि, जिन लोगों को यह पुरस्कार, सम्मान दिया जा रहा है, वे उसके लायक नहीं हैं। बहुत निराशाजनक स्थिति है। बाहर नाक कटाने वाली स्थितियां बन रही हैं। मन में बहुत क्षोभ है। हम चुप हैं। अगर हम बोलेंगे, तो लोग सुनेंगे नहीं। बोल कर फायदा क्या है?
उल्लेखनीय है कि 17 जून,1942 को जन्मे श्री सतीश जायसवाल की प्रकाशित कृतियों में कहानी संग्रह - "जाने किस बंदरगाह पर", "धूप ताप", "कहाँ से कहाँ", "नदी नहा रही थी", बाल साहित्य - "भले घर का लड़का", "हाथियों का गुस्सा", छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के पुरोधा रहे श्री मायाराम सुरजन की पत्रकारिता पर केंद्रित मोनोग्राफ, छत्तीसगढ़ के शताधिक कवियों की कविताओं का संचयन "कविता छत्तीसगढ़" का सम्पादन चर्चित रहा है। इसके अतिरिक्त चार साल पहले प्रकाशित संस्मरण कृति "कील काँटे कमन्द" को भी प्रबुद्ध पाठकों से बेहतर प्रतिसाद मिला है। श्री जायसवाल ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और गुजरात के सीमावर्ती भील अंचल में एक माह तक रहने के बाद अपने संस्मरण को इस कृति में लिखा था।
बिलासपुर वासी श्री जायसवाल पदुमलाल पुन्नालाल बक्शी सृजन पीठ, भिलाई के अध्यक्ष पद पर चार वर्षों तक कार्यरत रह चुके हैं। उन्होंने नई जिम्मेदारी के विषय में बताया कि, भोपाल और खंडवा के बाद अब बिलासपुर के निकट कोटा स्थित सीवी रमन यूनिवर्सिटी के अंतर्गत भी "वनमाली सृजन पीठ" की स्थापना हुई है, जिसका अध्यक्ष मुझे नियुक्त किया गया है। इस सृजन पीठ के तहत पूरे छत्तीसगढ़ में सृजन केंद्र भी बनेंगे, जिसका गठन शीघ्र ही पूरा हो जाएगा। इसमें साहित्य के अलावा सृजन के सभी क्षेत्र के लोगों को काम करने का मौक़ा मिलेगा। आपसी मेल मिलाप, बातचीत का सिलसिला शुरू होगा। इस सबके बीच मुझे अपनी रचनाशीलता को भी बचाये रखना है। घूमना भी हमारा रचना-अनुभव का एक हिस्सा है। इससे कोई नुकसान भी नहीं है। केवल लिखने तक मैंने अपने को सीमित नहीं रखा है।
आगत कृतियों की जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि, मैंने यात्रा संस्मरण खूब लिखे हैं। अभी उनका संकलन प्रकाशित नहीं हुआ है। राजकमल प्रकाशन के पास रखा है, जिसका शीर्षक है "सूर्य का जलावतरण" । इसमें पूर्वोत्तर राज्यों के यात्रा संस्मरण भी शामिल हैं।
 श्री जायसवाल ने क्षोभ व्यक्त करते हुए कहा कि, मैंने अपने काम को काफी फैला कर रखा है। अब प्राथमिकता है कि इसे समेटा जाए। बड़ी दिक्कत है कि अभी तक मेरा कोई काव्य-संग्रह प्रकाशित नहीं हो पाया है। इससे मेरे मित्र बेहद नाराज़ हैं। अब इसकी तैयारी करना है। उसके बाद नए उपन्यास का काम शुरू करूंगा।
मौजूदा योजनाओं के बारे में उन्होंने कहा कि, मैंने बहुत अधिक यात्राएं की हैं। इन दिनों सामूहिक यात्राएं कर रहा हूँ। सामूहिकता में भी मेरा विश्वास है। "आपसदारियाँ" नामक समूह भी हमने बनाया है। यह 15 लोगों का अनौपचारिक समूह है। इसके तहत सभी राज्यों के रचनाकार किसी एक मौसम में एक जगह जुटते हैं। प्रकृति और वहां के रहवासियों से साहचर्य होता है। हर यात्रा के बाद अनुभव लिखे जाते है। हर दो वर्ष में इसका एक वॉल्यूम तैयार किया जाएगा।
(भेंटवार्ता और चित्र : दिनेश ठक्कर बापा)

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