Tuesday 30 October 2018

साहित्य में आम आदमी की संवेदनाएं और पीड़ा हो : नथमल



वरिष्ठ पत्रकार-साहित्यकार से विशेष साक्षात्कार
साहित्य में आम आदमी की संवेदनाओं और उसकी  पीड़ा को उभारना आवश्यक है : नथमल शर्मा
बिलासपुर, छत्तीसगढ़। "साहित्य में आम आदमी की संवेदनाओं और उसकी पीड़ा को उभारना आवश्यक है। एक संवेदनशील रचनाकार अपने आसपास, गाँव, शहर, समाज पर जब लिखता है, तब वह इसका ध्यान रखता है। जब तक व्यक्ति का श्रम, उसकी पीड़ा, समाज का दर्द, समाज को बदलने की चाहत कविता या कहानियों में नहीं झलकेगा, तब तक वह सार्थक साहित्य नहीं कहा जा सकता।" यह विचार वरिष्ठ पत्रकार-साहित्यकार श्री नथमल शर्मा ने सोमवार, 29 अक्टूबर को न्यूज़ पोर्टल "एएम पीएम टाइम्स" को दिए गए विशेष साक्षात्कार के दौरान व्यक्त किये।
10 अप्रैल 1956 को बालाघाट, मध्यप्रदेश में जन्मे श्री नथमल शर्मा वाणिज्य में स्नातक हैं। छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता ही इनका मुख्य कर्म रहा है। इन्होंने अपने 41 बरस पत्रकारिता के क्षेत्र को संवेदनशीलता और सामाजिक सरोकारों के साथ समर्पित किये है। पत्रकारिता  के साथ ही पत्रकार और साहित्य आंदोलन से इनका गहरा जुड़ाव रहा है। दैनिक देशबन्धु के बिलासपुर संस्करण को स्थापित करने में बतौर सम्पादक इनका महती योगदान रहा है। वर्ष 1988 में इन्हें बिलासपुर जिले में मरवाही के निकट रजत जयंती ग्राम बस्ती बगरा की ग्राउण्ड रिपोर्टिंग के लिए अखिल भारतीय स्टेट्समेन ग्रामीण रिपोर्टिंग पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। वे  विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विद्यार्थियों के लिए अध्यापन कार्य भी करते रहे हैं। बिलासपुर को अपनी कर्मभूमि बनाने वाले श्री शर्मा बिलासपुर, रायपुर और शहडोल से प्रकाशित होने वाले दैनिक इवनिंग टाइम्स के प्रधान सम्पादक हैं। वे प्रगतिशील लेखक संघ के महासचिव, छत्तीसगढ़ (2013 से) तथा राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष (2016 से) भी हैं। बरसों पहले जब भीष्म साहनी बिलासपुर आये थे, तब उनके हाथों इन्हें अपने प्रथम काव्य संग्रह "सूरज को देखो" के विमोचन का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। इसका प्रकाशन प्रगतिशील लेखक संघ, बिलासपुर ने किया था। इनका दूसरा काव्य संग्रह है "उसकी आँखों में समुद्र ढूँढता रहा" (प्रथम संस्करण वर्ष 2016) । इसके प्रकाशक प्रगतिशील लेखक संघ, नई दिल्ली और मुख्य वितरक पीपुल्स पब्लिशिंग हाऊस, नई दिल्ली हैं। श्री शर्मा ने कुछ कहानियां भी लिखी हैं, जो प्रकाशन हेतु गई हैं। इनका एक नया काव्य संग्रह और लेखों के दो संग्रह प्रकाशनाधीन हैं।
श्री शर्मा की सृजित कविताओं, कहानियों, अख़बारी टिप्पणियों और संपादकीय में सामाजिक सरोकारों की प्रधानता रहती है। उनका दर्द, आक्रोश कविता "हम छत्तीसगढ़ के लोग" में झलकता भी है "पूर्वजों की आँखें देखती हैं/ कहीं दूर से/ अपने खेतों को कारखाना बनते/ और/ देखती हैं/ अपने ही खेतों में/ अपने बच्चों को  मजदूरी करते/ टपक पड़ते हैं आँसू तब/ वे आँसू मिल जाते हैं/ महानदी की धार में/ सबके आँसू लिए बहती है/महानदी/हम छत्तीसगढ़ के लोग/ महानदी में आँसू बन कर बह रहे हैं/ तरक्की की कीमत चुका रहे हैं/ अपनी धरती में/ सोना, कोयला, सागौन, पलाश, हीरा/होने की कीमत चुका रहे हैं/सोना हो रहे हैं वे लोग/कोयला हो रहे हैं हम लोग/हो भी जाना चाहते हैं/हम कोयला/कोयले की तरह/दहक भी जाना चाहते हैं/हम छत्तीसगढ़ के लोग/जानते हो तुम कि/दहकेंगे हम/इसलिए तेजी से खोद रहे हो/और लारियों में भर -भर कर/लगातार दूर भेज रहे हो/हम छत्तीसगढ़ के लोग/जंगलों में बारूद बनना नहीं चाहते/हम तो/जंगल में ज़िन्दगी ढूँढ़ते हैं"।
नथमल शर्मा की कविताओं का हर कोई प्रशंसक है। जाने माने कथाकार तेजिन्दर ने इनके दूसरे काव्य संग्रह की प्रस्तावना में लिखा था "नथमल शर्मा की कविता की सबसे बड़ी ताकत यह है कि वे मनुष्य और मनुष्यता के लिए लिखी गई कवितायें है जो सीधे पाठक के साथ संवाद करती है। अपनी कविता समुद्र में वे उस बालक के साथ भी संवाद करते नज़र आते हैं, जो सीप, मोती और शंख बेचने वाले बच्चों के झुण्ड में शामिल है। वे उन बच्चों की आँखों में समुद्र ढूँढ़ते हैं और यह एक बात उनकी कविता को अनंत विस्तार देती है।"
कविताओं की ताकत को रेखांकित करते हुए श्री शर्मा अपनी भेंटवार्ता के दौरान कहते भी हैं "कविता बहुत कुछ कहती है। कई बार कविता सब कुछ कह जाती है। दरअसल कविता जहां ख़त्म होती है, बात वहीं से शुरू होती है। समाज को देखने दुनिया को खंगालने की ताकत कविता की भी है। ये शब्दों की ताकत है। ये कविताओं का प्रभाव है कि जो ज़िन्दगी को बनाती है, संवारती है। मुझे लगता है कि पत्रकारिता करते करते संवेदनशीलता भीतर बहती रही। इस संवेदनशीलता ने ही खबरों के अलावा कुछ रच दिया, जिस मेरेे मित्र कवितायें कहते हैं। पत्रकारिता की जद्दोजहद, समाज, दुनिया, राजनीति को देखने की उलझनें भी ज़िन्दगी में रही। इस बीच कविताओं के साथ दोस्ती हुई। उसके बाद निरन्तर सृजन हो रहा है।"
प्रगतिशील कविताओं के जारी लेखन कर्म से संतुष्टि बाबत उन्होंने स्पष्ट किया कि, "सवाल प्रगतिशीलता का नहीं बल्कि मानव, मनुष्यता के लिए क्या लिखा जा रहा है, उसका होना चाहिए। रचनाओं को किसी दायरे में बाँध नहीं सकते। हाँ, यह बात सही है कि हम परम्पराओं को तोड़ते हैं। जड़ चीजों पर प्रहार करते हैं। हम समाज, देश, दुनिया को बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं। रचनाओं के माध्यम से उसे उकेरते हैं। शायद वही प्रगतिशीलता है। जहां तक सन्तुष्ट होने की बात है तो मेरा मानना है कि अगर जिस दिन कोई रचनाकार संतुष्ट हो गया तो उसी दिन उसका रचना कर्म बंद हो जाएगा। लगातार लिखते जाना हमारा काम है। मुझे लगता है कि लिखने से पहले ज्यादा पढ़ना भी हमारा काम है।"
आपने अपनी कविताओं में किन विषयों को ज्यादा फोकस किया है? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि,  "संवेदनशील रचनाकार किसी एक विषय पर बात नहीं कर सकता। वह सब पर लिखता है। कविताओं में दुनिया, नदियां, चिड़ियाँ, पहाड़, समुद्र ये सब प्रतीक हैं। दरअसल कविताओं में मनुष्य की संवेदनाएं होती हैं। समाज की पीड़ा होती है। वह समय बीत गया जब नैन नक्श, श्रृंगार पर ही लिखने को कवितायें कहते थे।"
सोशल मीडिया के ज़रिये लिखी जाने वाली कविताओं के स्तर पर इनका कहना है कि, "सोशल मीडिया का दौर एक तरह से अच्छा भी है। इसने एक बड़ा कैनवास रचनाकारों के सामने रखा है। साथ ही बुराइयां भी हैं। इस पर बिना सिर पैर की चीजें भी आ रही हैं। सवाल यह है कि इसमें हम क्या बोल रहे है, बता क्या रहे हौं, लिख क्या रहे है? जो भी प्रस्तुत, सम्प्रेषित हो वह स्तरीय और सार्थक होना चाहिए।"
पिछले एक दशक से जो साहित्य सृजन हो रहा है, उसमें समाज के सरोकारों से लेकर आम आदमी की बात को कितना समाहित किया जा रहा है?, श्री शर्मा ने कहा "अगर आम आदमी की बात नहीं होती है तो वह सही रचनाएं नहीं कही जा सकती। सवाल यह है कि हम किस नज़रिये से लोगों को देख रहे हैं। अपनी रचनाओं में किस नज़रिये को पेश कर रहे हैं। उसमें कितनी संवेदनशीलता है।"
साहित्यिक संस्थाओं और सरकारी साहित्य अकादमी द्वारा प्रदत्त किये जाने वाले पुरस्कारों की प्रक्रिया को आड़े हाथ लेते हुए उन्होंने कहा कि "हिन्दुस्तान में एक शब्द है जुगाड़। अगर आप जुगाड़ जानते हैं तो ये पुरस्कार आसानी से हासिल कर सकते हैं। उस पर अब बहुत ज्यादा चर्चा करने की जरूरत नहीं है। अब जागरूक लेखक, पाठक सब असलियत जान गए हैं। मुझे यह भी नहीं लगता कि पुरस्कार प्राप्त करने से कोई रचनाकार बड़ा हो जाता है। बहुत सारे रचनाकार पुरस्कार प्राप्त कर छोटे हुए हैं। साहित्य या पाठकों को इस तरह के किसी सील ठप्पे की जरूरत भी नहीं है।"
शैक्षणिक संस्थाओं के पाठ्यक्रम में किनकी साहित्यिक रचनाओं को ज्यादा शामिल किया जाना चाहिए?, श्री शर्मा ने कहा "हाँ, यह महत्वपूर्ण सवाल है। कहानीकारों में प्रेमचंद और कवियों में मुक्तिबोध जैसे साहित्यकारों का उदाहरण देना चाहूँगा। जिनकी रचनाओं को स्कूल से लेकर कॉलेज विश्विद्यालय तक के पाठ्यक्रम में अधिक शामिल करना चाहिए, क्योंकि वे हमारे समाज का आइना हैं। वे इतिहास का बोध करा रहे हैं। वे आगे चलने के राह दिखा रहे हैं। इन पर लगातार काम होना चाहिए। अगर युवा पीढ़ी के साथ टकरा देने का माद्दा हमारे में नहीं है तो रचनाकर्म करने का कोई मतलब नहीं है।"
(भेंटवार्ता और चित्र दिनेश ठक्कर बापा द्वारा)

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